एक बौनी बूँद
काव्य साहित्य | कविता दिव्या माथुर29 Nov 2007
एक बौनी बूँद
मेहराब से लटक
अपना क़द
लंबा करना चाहा
बाकी बूँदें भी
लंबा होने की
होड़ में
धक्का मुक्की
लगा लटकीं
क्षण भर के लिए
लंबी हुईं
फिर गिरीं
और आ मिलीं
अन्य बूँदों में
पानी पानी होती हुई
नादानी पर अपनी!
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