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एक दीपक

एक दीपक मैं जलाऊँ प्रार्थना का, 
एक दीपक तुम जलाओ अर्चना का।
स्नेह बाती सा मिले ये नेह अपन, 
हो प्रकाशित पथ हमारी भावना का।

 

दीप तो कितने जलेंगे हर भवन, 
पर हमारा दीप हो शुभ कामना का।
मन मन्दिर में रूप प्रिय का देखने,
प्रेम दीपक मैं जलाऊँ वन्दना का।

 

हो न विचलित ज्योति झंझावात से, 
तुम जलाना एक दीपक साधना का। 
इस अमा में दीप की ज्योति प्रखर हो,
फल यही पाऊँ तेरी आराधना का।

 

एक दीपक आज आ यदि तुम जला दो, 
गीत फिर से गा उठूँ प्रिय याचना का। 
ज्योति का तो लक्ष्य तम को जीतना है, 
मैं बनूँ दीपक तुम्हारे आँगना का।

 

हर सकूँ यदि तम सकल संसार का,
मैं जलूँगा दीप बन सद्‍ भावना का। 
बस यही है राग औ अनुराग मेरा, 
तुम रहो बस केन्द्र मेरी प्रेरणा का।

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