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एक नया जोश जगायें हम

पीले पीले स्वर्ण कुसुम पर,
भौंरा बन नित मँडरायें हम,
वसंतोत्सव के अवसर पर,
एक नया जोश जगायें हम।

ऋतुराज के शुभ आगमन से,
प्रकृति का नव शृंगार हुआ,
चहुँ ओर खिले असंख्य पुष्प,
नवजीवन का संचार हुआ।

भूखे पेट जो सोते थे,
जिनकी हड्डियाँ तक बजती थीं,
बीत गयी पूस की रातें, जब
 ठंढी आग में मनुष्यता जलती थी।

सत्ता के हाशिये पर जी रहे लोगो,
उठो परिवर्तन को स्वीकार करो,
कब तक मिटते रहोगे यूँ ही,
अब तो अपनी स्वतंत्रता अंगीकार करो।

कोई गांधी नहीं, नेहरू भी नहीं,
न कोई जेपी दुबारा आयेगा,
छोड़ दो अतीत की बीती बातें,
तुम्हें जगाने - नहीं अम्बेदकर आयेगा।

नया मौसम है नयी लहर है,
चलो मिलकर एक शक्ति बन जायें हम।
बहुत देख चुके सूत पहनने वाले,
अपना रक्षक स्वयं बन जायें हम।

हर मौसम हो जागरण का,
जगाना हमारा कर्म औ धर्म बने,
ऋतुराज जैसा सुखद हो हर दिन,
अपनी धरती पर हमारा अधिकार बने।
 

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