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एक निगेटिव रिपोर्ट बस!

मैं आदमियों के हॉस्पिटल पता नहीं क्यों अपने कुत्ते का कोविड टेस्ट करवाने आया था? मैं चाहता था कि मेरा हमेशा पॉज़िटिव रहने वाला कुत्ता भी कम से कम एकबार तो निगेटिव आए। इसलिए कि पता नहीं मुझे कुत्ते में आदमी का स्वभाव नज़र आया था या कि इसलिए कि मुझे उस कुत्ते में छिपा आदमी पसंद आया था।

मेरा देश लाइनप्रिय देश है। यहाँ आने से लेकर जाने तक लाइन ही लाइन लगी होती है। कुछ हिम्मतवर क़िस्म के लोग इस देश में लाइनों को कोई ख़ास तवज्जो नहीं देते। उनके लिए लाइन वहीं से शुरू होती है जहाँ वे खड़े होते हैं। बहूदा ऐसा ही होता है कि लाइन उनके पास से ही लगती है और उनके पास ही ख़त्म हो जाती है।

हॉस्पिटल में भी लंबी लाइन लगी थी, रोज़ की तरह। पर अबके यह लाइन कोविड टेस्ट करवाने को लगी थी। जन्म-जन्म निगेटिव रहने वाले आदमी के दिमाग़ में भी सब यही कामना– हे भगवान! अबके इस टेस्ट में मुझे निगेटिव निकलवना। जैसे ही तेरा मंदिर खुलेगा, मैं सबसे पहले सवा पाँच रुपए का प्रसाद तेरे मुँह में डालने के बाद ही अपने मुँह में डालूँगा। 

इस छोर से लेकर उस छोर तक बेतरतीब लाइन के हर मास्क लगे मुँह के भीतर जब एक ही मन्नत सुनी तो भगवान परेशान हुए हों या न, पर मैं ज़रूर परेशान हो उठा, "हे भगवान! ये कैसे दिन आ गए अपनी धरती पर?  कल तक जो आदमी घोर निगेटिव होने के बाद भी पॉज़िटिव होने की दुआएँ माँगा करता था, आज वही टेस्ट में निगटिव होने की दुआएँ माँग रहा है? हे पॉज़िटिविटि! कहाँ हो तुम? इस संसार के निगेटिव होने के लिए एड़ियाँ रगड़ने से पहले मैं यहाँ से चला क्यों न गया?"

जब उस लाइन को ज़रा ग़ौर से देखा तो पाया कि मैं ग़लती से उस लाइन में लग गया था जहाँ मुर्दों की लाइन थी। फिर सोचा, लाइन तो लाइन होती है। जैसी ज़िंदों की, वैसी मुर्दों की। तभी कुत्ते ने मुझे मेरी ग़लती का अहसास करवाया तो मैं हर बार की तरह कुछ झेंपा। असल में मुझे वह लाइन दूसरी लाइन से कुछ छोटी लगी थी। 

अपने से आगे लाइन में खड़ा मुर्दा देखा तो मुझसे रहा न गया सो मैंने उससे जितना मेरे पास ग़ुस्सा बचा था उतने ग़ुस्से होते उससे मैंने उससे पूछा, "हद है यार! माना लाइन में उम्र भर खड़े रहते-रहते हमें मरने के बाद भी लाइन में खड़े होने की लत लग जाती है। पर इसका मतलब ये तो नहीं हो जाता कि ज़िंदा जी तो ज़िंदा जी, मरने के बाद भी बेकार में लाइन में खड़े हो औरों का नंबर रोके रखो।"

"नहीं भाई साहब! हम लत की मार से नहीं, अपनी ज़रूरत के लिए लाइन में लगे हैं। हमने तो सोचा था कि मरने के बाद इस देश की लाइन से छुटकारा मिल जाएगा पर..." कह मेरे आगे खड़े मुर्दे ने खड़े-खड़े अपने दर्द से दुखती कमर पर हाथ धरा ।

"क्या मतलब तुम्हारा?” मैंने मुर्दे से घूरते हुए पूछा।

 "असल में बात भाई साहब ये है कि हम जैसे-तैसे लाइन में लगते-लगते मर तो गए, पर जब मरने के बाद ऊपर पहुँचे तो उन्होंने गेट पर ही रोक दिया।"

"तो?? गेट ऊपर भी होते हैं क्या? मैंने तो सोचा था कि ऊपर आदमी बेरोक टोक जा सकता है।"

‘मैंने भी भाई साहब यहाँ से जाने के बाद यही सोचा था पर…"

"पर क्या?"

"जबसे सारे लोकों में कोरोना की अफ़वाह फैली है, वहाँ भी सारे गेट सील कर दिए गए हैं।" 

"तो??"  

"तो क्या भाई साहब! एक-एक डाक्यूमेंट मरने के बाद भी लेंस लगा कर यों चेक कर रहे हैं ज्यों मरकर हमने कोई बहुत बड़ गुनाह कर लिया हो।"

"क्या मतलब तुम्हारा? जीना तो मुश्किल था ही अब मरना भी मुश्किल हो गया?" अबके मेरे बदले कुत्ते ने उससे पूछा तो वह बोला, "भाई साहब! ऊपर भी उन्हीं को इंट्री मिल रही है जिनके पास टेस्ट की निगेटिव रिपोर्ट है। बिना निगेटिव रिपोर्ट वाले मुर्दे जीव के साथ तो वहाँ कुत्ते से भी बदतर दुर्व्यवहार किया जा रहा है। अब शिकायत करें तो कहाँ करें?" उसने मुँह लटकाया।

"तो अब??"

 "तो  अब क्या? बड़ी मुश्किल से हमने नेताजी से संपर्क किया। उनसे कहा— नेताजी! चैन से जिए तो नहीं, अब मरने के बाद भी हमको चैन नहीं।"

"तो? तो वे पूछे?"

"हाँ! हम बोले— आपके राज की सैंपल में फेल दवाइयाँ खाकर हम ऊपर तो चले गए, पर अब गेट पर ही रोक दिए गए हैं।"

"उनकी इतनी हिम्मत जो हमारे बंदे को रोकें? तुमने बताया नहीं कि तुम कहाँ से आए हो? किसके वोटर हो?"

"सब बताया माई बाप! सब बताया! पर कोई नहीं पूछ रहा। जिसको भी आपके बारे में बताते हैं, वही हम पर थूके रहा। साहेब! जिंदा जी तो आपने हम पर कभी मेरहबानी नहीं की। वोट हमसे लिया और फायदा उनको दिया, पर मरने के बाद ही हम पर एक मेहरबानी तो कर दो सरकार!"

"अरे, हम तो तुम्हारे मरने के बाद भी तुम्हारे हित के लिए ही तो बैठे हैं। बोलो क्या फेवर चाहते हो हमसे?? ससुरे यमराज को तुम्हारे नाम का डीओ लैटर भिजवाएँ क्या?"

"हमें टेस्ट करवाने के लिए अलग से लाइन लगवा दो ताकि... मरने के बाद से टाँगें जवाब दे गई हैं।"

"देखो! एक देश, एक कानून तो लाइन भी एक ही होगी। मुर्दों जिंदा सबके लिए। हम इस देश को और लाइनों में बाँटना नहीं चाहते," वे समाजवादी होते बोले।

"फिर तो मरने के बाद भी हमारी बारी आने से रही — मैंने उनके आगे हाथ जोड़े तो वे तनिक पसीजे। फिर पता नहीं क्यों उन्होंने तत्काल प्रशासन को आदेश दिए कि मरे लोगों को ज़िंदों की लाइन में खड़ा करना सरासर अन्याय होगा। ऐसा होने पर ज़िंदा लोगों में मरने का ख़ौफ़ और बढ़ जाएगा। इसलिए जनहित में मुर्दों के टेस्ट के लिए अलग से लाइन लगवाई जाए।"

 "तो??"

"बस साहब! अब बड़ी मुश्किल से अपनी अलग लाइन करवा अपनी लाइन में खड़े हैं। इस उम्मीद में कि जैसे ही इधर मेरे टेस्ट की रिपोर्ट मिली तो उधर हम... सच कहें बंधु! मरने के बाद भी इस लाइन में खड़े होते-होते बहुत थक गए हैं हम," कह मुर्दे ने मेरा सहारा लिया तो मैंने उसे सांत्वना देते पूछा,"मान लो, टेस्ट की रिपोर्ट पॉज़िटिव आई तो?"

"भैयाजी! हाथ में ये हज़ार काहे को पकड़े हैं? पित्जा खाने से तो रहे," मुर्दे ने मुझे आँखों तरेरते कहा और अपने मुँह का मास्क ठीक कर, मेरी जेब से साधिकार सैनिटाइज़र निकाल सीधा खड़ा हो गया,  लाइन में घुसपैठ की ताक में।

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