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एक साहित्यिक जासूसी उपन्यास : ‘निष्प्राण गवाह’

जासूसी उपन्यास और साहित्यिक! ....... हा! हा! हा!

बहुत बड़ा विरोधाभास है परंतु ‘निष्प्राण गवाह’ को पढ़ने के बाद संभवतः आप मुझसे सहमत होंगे। कादंबरी मेहरा की यह पुस्तक अपवाद है।
ब्रिटिश जासूसी उपन्यासों के लेखक आर्थर कानन डायल और अगाथा क्रिस्टी के उपन्यास ब्रिटेन के हाई-स्कूल और कॉलेज के पाठ्यक्रम में लगे हुए हैं। रहस्य और रोमांच से भरपूर यह जासूसी पुस्तक ‘निष्प्राण गवाह’ भी उसी स्तर की है। उपन्यास की भाव-भूमि, इसके किरदार, घटनाक्रम और जासूसी करने की ज़बरदस्त टेक्नॉलोजी सब ब्रिटिश परिवेश के हैं। इस जासूसी उपन्यास का कथ्य भी अंग्रेज़ी जासूसी उपन्यासों की तरह ख़ूब अच्छा कसा हुआ है। हत्या, रहस्य-रोमांच, अपराध, गोपनीयता और रोमांचकारी घटनाक्रम के साथ विश्लेषण की आधुनिक जासूसी टेकनीक तथा भाषा-प्रवाह और क़िस्सागोई ही पाठक को ‘आगे क्या होगा’ की जिज्ञासा को हर पल उकसाता हुआ रोमांचित करता है। जैसा कि ऊपर कहा है, ‘निष्प्राण गवाह’ का प्लॉट, कुछ इस तरह बुना गया है कि पाठक, अंत से पहले हत्या का रहस्य जान तो क्या सूँघ भी नहीं पाता है। उपन्यास की जासूसी भाषा परिष्कृत है और शिल्प सधा हुआ, कलात्मक और प्रभावोत्पादक है। 

उपन्यास ‘निष्प्राण गवाह’ अस्सी और नब्बे के दशक में युवा ख़ूबसूरत लड़कियों के रातों-रात ग़ायब होते जाने की ‘अनसॉल्व्ड मिस्ट्री’ पर आधारित 95 पृष्ठ का एक अत्यंत रोचक सत्य घटना पर आधारित साहित्यिक जासूसी उपन्यास है। सत्य घटना से मेरा तात्पर्य मात्र इतना ही है कि 1980-90 के दशक में 17-18 वर्ष की कई ख़ूबसूरत कमसिन लड़कियाँ जैसे नीली आँखों वाली सूज़ी लैम्पू, लंबे सुनहरे बालों वाली स्टैसी नोबेल, ‘बनी-गर्ल’- ब्लैक डेलिया, जैसी हसीन लड़कियों के ग़ायब हो जाने की रोमांचकारी, रहस्यात्मक घटनाएँ भुलाए नहीं भूलती हैं। उपन्यास ‘निष्प्राण गवाह’ ग़ायब होती उन मासूम लड़कियों की याद दिलाता है जो आज भी ब्रिटेन की ‘अनसॉल्वड मर्डर मिस्ट्री’ हैं। साहित्यिक से मेरा तात्पर्य पुस्तक की स्तरीय भाषा, कथ्य पर लेखिका की असाधारण पकड़, साथ ही विषय की सिस्टेमैटिक, विधि-विधान के साथ जाँच, गहन पड़ताल के साथ उसका समाजिक जुड़ाव। निश्चित ही कादंबरी मेहरा ने इस जासूसी कथा-वस्तु का अंत तक बड़े ही प्रभावोत्पादक ढंग से निर्वाह किया है।

जासूसी उपन्यासों और रहस्यत्मक हत्याओं पर लिखी गई कहानियों और उपन्यासों को हिंदी साहित्य-जगत में बड़ी हेय दृष्टि से देखा जाता है। एक तरह से जासूसी उपन्यास हिंदी साहित्य का वर्जित क्षेत्र है। हिंदी के मठाधीश उसे रहस्य और रोमांच का सस्ता साहित्य मानते हैं। आज तक देवकी नंदन खत्री का उपन्यास ‘चंद्रकांता संतति’ जिसने भारतीय पाठकों के हिंदी सीखने और पढ़ने के लिए उत्प्रेरित किया उसे हिंदी के साहित्य जगत में पूर्णरूप से साहित्य का दर्ज़ा नहीं प्राप्त हो सका। कादंबरी मेहरा जैसी सूझ-बूझ और बौद्धिक चेतना रखने वाली एक सफल महिला लेखिका ने यह सब जानते हुए भी यह ख़तरा क्यों मोल लिया? क्या यह भी एक विचित्र रहस्य नहीं है?

ब्रिटेन में ही नहीं संपूर्ण विश्व में कहीं न कहीं रोज़ हत्याएँ होती हैं और अनेक अनसुलझी हत्याएँ प्रायः सबूत न मिल पाने के कारण ठंडे बस्ते में चली जाती हैं। कभी-कभी बरसों बाद कोई प्रमाण मिल जाने पर उनकी फ़ाइल खुलती है। ऐसे में अधिकांश प्रमाण नष्ट हो चुके होते हैं और संबंधित लोगों में से कुछ लोग अल्ला मियाँ को प्यारे हो चुके होते हैं, कुछ विदेश गमन कर गए होते हैं और कुछ नर्सिंग-होम में याददाश्त खोकर मरने की घड़ियाँ गिन रहे होते हैं। किंतु जासूस तो जासूस ही होते हैं वे बाल में से खाल निकाल लेते हैं। ऐसे ही एक रहस्यमय घटना का उद्घाटन होता है कादंबरी मेहरा के उपन्यास ‘निष्प्राण गवाह’ में...

निष्प्राण गवाह है मृतक लड़की का कालीन में लिपटा हुआ कंकाल जो वर्षों पूर्व उसके हत्यारे ने बीच समुंदर में अपने ‘लक्ज़री याट’ से फेंका था। कालीन में लिपटी मृतक लड़की की देह समुंदर के तूफ़ानी थपेड़े खाती रही और संयोगवश एक दिन ज्वार-भाटा की उत्ताल तरंगों ने उसे उसी कॉटेज के पिछवाड़े सुनसान समुंद्र तट पर लाकर पटक दिया जहाँ पर उसकी हत्या हुई थी। बरसों-बरस उस लिपटे हुए कालीन पर रेत और खर-पतवार की पर्तें जमती रहीं।

तक़रीबन एक-डेढ़ दशक बाद, लंदन के दक्षिणी समुन्द्र तट पर बसे, बोर्नमथ शहर के पास उस ख़स्ताहाल बंद पड़े कॉटेज की क़िस्मत जगी, जब स्कूल टीचर मार्टिन गिलबर्ट ने उसे ख़रीदकर अपना रिटायरमेन्ट हाउस बनाने की मंशा से रंग-रोगन आदि कर के ठीक-ठाक किया। मार्टिन ने 21 जून की शाम, ब्रिटेन के मूल बाशिदों केल्टिक जनजाति के पेगन त्यौहार याने वर्ष का सबसे लम्बा दिन, कॉटेज के गृह प्रवेश, अपनी प्रेमिका डिनीस का जन्मदिन तथा अपने अवकाश प्राप्ति का उत्सव एक साथ मनाने की ।

शाम को ‘बार-बे-क्यू’ पार्टी की सारी तैयारी करने के पश्चात् आग जलाने के लिए मार्टिन एक लकड़ी का गट्ठर उठा कर चला आ रहा था कि रास्ते में उसे ठोकर लगी, वह लड़खड़ा कर गिर पड़ा उसे चोट लगी। उसने सोचा जश्न के बीच कहीं उसके मेहमानों को ठोकर ना लगे अतः उसने फावड़े से उस रेत के टीले को हटा कर उस जगह को समतल करने की कोशिश की तो वहाँ रेत में दबा हुआ हरे और पीले रंग का ‘रोल’ किया हुआ कालीन नज़र आया। ‘उसे याद आया कि मास्टर बेडरूम में एक कोने में इसी रंगरूप का फूसड़ अटका हुआ है। मार्टिन ने डंडी के सहारे उसे थोड़ा और फरोला तो देखा पूरा गलीचा, रोल किया हुआ, दबा पड़ा है।’ पृष्ठ- 12-13. इसी बीच उसका पड़ोसी डेविड वहाँ आ गया दोनों ने मिल कर रेत हटा कर जब कालीन उठाने की कोशिश की तो कालीन में से झाँकते लम्बे सुनहरे बालों देखते ही दोनों के मुंह से ‘हेल्प-हेल्प’ की चीख़ निकल पड़ी। पल भर में पुलिस की लाल-नीली बत्तियों वाली गाड़ियाँ आईं, कालीन समेत लाश को कब्ज़े में लेकर, कॉटेज को सरकारी ताला लगा समुन्द्र तट के उस हिस्से पर लाल फीते की बाड़ लगा दी... आगे इस रहस्यमय, रोमांचकारी ‘निष्प्राण गवाह’ की गवाही की कथा उपन्यास के पृष्ठों पर अंकित है...

उपन्यास ‘निष्प्राण गवाह’ मात्र 95 पृष्ठ का है। इस छोटे से जासूसी उपन्यास में लगभग 30-32 किरदार हैं जो कथानक और विषय-वस्तु के प्रतिपादन में अत्यंत महत्वपूर्ण ‘रोल’ करते है। बीच-बीच में उपन्यास के बुनावट में ब्रिटेन के 8-10 शहरों, क़स्बों, समुद्र तटों के साथ स्पेन के समुद्र तट और ‘जेम्स बॉड- 700’ के लक्ज़री यॉट’ जैसा ख़ूबसूरत शब्द-चित्र भी अंकित करते हैं। पुस्तक में आए शहरों, नगरों, युरोपीयन मयख़ानों, ड्रग-पुशिंग आदि के चित्रात्मक वर्णन पाठकों के लिए मात्र रोचक और पठनीय ही नहीं बल्कि हिंदी बेल्ट के पाठकों के समाजशास्त्रीय समझ को पुख़्ता करने का माध्यम भी बने हैं।

उपन्यास में जगह-जगह बिंबात्मक, प्रभावोत्पादक मुहावरेदार भाषा का प्रयोग है। रहस्य और रोमांच से भरा यह उपन्यास समाजोन्मुख भी है क्योंकि उपन्यास का ताना-बाना, घटना चक्र आदि अंग्रेज़ी-साहित्य, गणित की अध्यापिका कादंबरी मेहरा के बेहतरीन कल्पनाशील एवं विश्लेषणात्मक दिमाग की उपज है। ‘निष्प्राण गवाह’ पढ़ते हुए विशेषकर भारतीय पाठक को ब्रिटेन के आठवें और नौवें दशक के रहन-सहन, माइग्रैंट समुदाय, उनके संघर्ष, ब्रिटेन की समाजिकता, ब्रिटेन की यौन प्रवृतियाँ याने परमिस्सिव सोसाइटी, टूटते रिश्ते, श्रम-शोषण, यौन शोषण, किशोरों की नशा खोरी, ब्रिटेन के निम्न मध्य-वर्गीय जीवन, अनिवार्य शिक्षा, एज आफ़ कॉन्सेन्ट, ब्रिटेन की बदलती पब संस्कृति, अपराध सेक्स आदि के साथ ब्रिटेन के कॉमन मार्केट के साथ व्यापारिक समझौतों से आई आर्थिक मंदी आदि के अच्छे-ख़ासे प्रामाणिक संदर्भ मिलते हैं जो लेखिका के साक्षात अनुभवों को प्रतिबिंबित करता है।

वस्तुतः उपरोक्त संदर्भ कादंबरी ने कहानी के कलेवर में सायास किसी चतुर कलाकार की मीनाकारी की तरह बड़ी ख़ूबसूरती से क़िस्सागोई अंदाज़ में छोटे-छोटे पैराग्राफ में पाठक की जिज्ञासा बढ़ाते हुए बड़ी चतुराई से बुने गए हैं। वस्तुतः ये जानकारियाँ उपन्यास की गति और प्रवाह को बोझिल न बना कर उपन्यास के ‘इंट्रिकेट पैटर्न’ में तरह-तरह के रंग भरते हुए मनोरंजक और संवेदनशील बनाते हैं। कहानी में आए चरित्रों के अंग्रेज़ी नाम अवश्य ही भारतीय पाठकों को पन्ने पलटने की थोड़ी सी किलस पैदा कर सकता है क्योंकि अंग्रेज़ी नामों की ध्वन्यात्मकता अक़्सर मिलती-जुलती होती है जैसे स्टीव, स्टुअर्न, स्टुअर्ट, स्टीवेन्सन आदि। लेखिका इस पर ध्यान दे सकती थी पर हो सकता है यह भी एक जासूसी उपन्यास की माँग हो। वस्तुतः इस कसे हुए छोटे से उपन्यास फलक बहुत बड़ा और प्रभावी है।

अंत में कादंबरी ने ब्रिटेन के जासूसी विधि-विधान की गहरी खोज की है। पाठक की दृष्टि जब उपन्यास के शीर्षक पर पड़ती है तो वह शीर्षक के विरोधाभास से सर्वप्रथम आकर्षित होता है। उपन्यास में क़दम-क़दम पर रहस्य और रोमांच की नई-नई असरदार आवृति होती है। कहानी के कई किरदार बार-बार संदेह के घेरे में आते हैं पर फिर थोड़ी ही देर बाद एक अन्य किरदार जो बिल्कुल निर्दोष सा लगता है वह निशाने पर आ जाता है।. संपूर्ण उपन्यास जासूस, जासूसी, पुलिस, हत्यारों, अंडर वर्ल्ड आदि के दाँव-पेचों, संसनीखेज़ हत्याओं, रहस्यों, षड़यंत्रों, हथकंडों, मोड़ों और गुंजलकों से निकलते हुए निष्प्राण गवाह’ की गवाही दर्ज़ करता है। कादंबरी का यह उपन्यास रामकुमार वर्मा, जेम्स हिल या जिम डेविस जैसे निर्देशक की ‘वेल डाइरेक्टेड मिस्ट्री मूवी’ की तरह कुर्सी पर बैठे दर्शक को नाखून चबाने या पहलू बदलते हुए मर्डर के राज़ के खुलने का इंतज़ार करने को मजबूर करता है... अंत में सोचती हूँ कि ‘निष्प्राण गवाह’ की गवाही को राज़ ही रहने देना ही ठीक रहेगा... इसलिए कि पाठक आगे की कहानी कौतूहल और रोमांच के साथ उपन्यास के पन्नों पर पढ़ें...।

‘निष्प्राण गवाह’ जैसे सहित्यिक जासूसी उपन्यास का अवदान कर, कादंबरी मेहरा ने ब्रिटेन के हिंदी साहित्य को जिस तरह समृद्ध किया है वह वस्तुतः प्रशंसनीय एवं स्वागत योग्य है। उपन्यास का शीर्षक ‘निष्प्राण गवाह’ सांकेतिक एवं हर तरह से आकर्षक एवं रहस्यात्मक है। उपन्यास की भाषा चरपरी, मुहावरेदार, समृद्ध, सरस और रोचक है। मुझे पूरी आशा है कि विश्व हिंदी जगत में कादंबरी मेहरा का रहस्यात्मक, साहित्यिक जासूसी उपन्यास ‘निष्प्राण गवाह’ अपनी रोचक, चित्रात्मक एवं कथात्मक शैली के कारण लोकप्रिय होगा...

                                    usharajssaxena@gmail,com 

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