एक संवाद
काव्य साहित्य | कविता अरुण कुमार प्रसाद1 Aug 2020
रोज़ी ने किया
विस्थापित।
घर के अभावों,
पत्नी के अरमानों का ख़्याल
मुझमें रहा स्थित।
रोटी के लिए धन
तेरे लिए
वस्त्र और ज़ेवर।
झुमके, बालियाँ।
पाँव के पायल, कंठ के हार।
बहुत तोहफ़े,
भेजे हैं प्रिय!
कैसा लगा लिखना,
फ़रमाईश भी।
पत्नी का पत्र
जल्द ही आ गया
लिखा था -
आओ। उदास है ज़िंदगी।
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