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एक सपना

नवम्बर का पहला सप्ताह, राधे जो कि जयपुर शहर में अपनी पढ़ाई कर रहा था, एक दिन उसके सोशल मीडिया पर एक लड़की धड़ाधड़ उसके फोटो वग़ैरह को लाईक किये जा रही थी, राधे यह सब देखकर कुछ हैरान और कुछ ख़ुश भी था क्योंकि पहली बार किसी लड़की ने उसके सारे फोटो को लाईक किया और आगे चलकर उससे बात करने को उत्साहित थी। लेकिन फिर उसके मन में विचार आया कि ये मेरा कोई दोस्त भी हो सकता है, जो घूँघट निकाल के मेरे मज़े लेने आया हो । 

राधे ने उस लड़की को मैसेज किया और पूछा– "आप सच में लड़की हैं या नहीं? लड़की भी बहुत ही होशियार थी उसने भी जवाब दिया– "आप जयपुर रहते हैं और मैं आपको जानती हूँ और मैं मध्यप्रदेश से हूँ।"

ये  सुनकर राधे अचंभित रह गया, उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि कोई लड़की वो भी दूसरे राज्य की, इतना सब कुछ उसके बारे में कैसे जानती है? उसे अब पूरा यक़ीन हो गया था कि ये कोई अपना ही मित्र है जो मेरे मज़े ले रहा है। लेकिन सरकार भी कम नहीं थी राधे की हर बात का उल्टा जवाब दे रही थी। सरकार  ने उसे बहुत दिनों तक अपना परिचय नहीं दिया। राधे जितनी बार उसके बारे में पूछता वो हर बार एक ही बात दोहराती थी– "बोला न मध्यप्रदेश से हूँ, तुम्हें जानती हूँ, मेरे गाँव का और मेरा नाम एक ही अक्षर से शुरू होता है और तुम्हें पता भी है।"

राधे ने अब ज़िद पकड़ ली थी चाहे कुछ भी हो जाये वो सरकार को देखे बिना उससे अब बात नहीं करेगा। 

लेकिन सरकार भी इतनी आसानी से मानने वाली नहीं थी। वो रोज।ज़ कुछ न कुछ बहाना करके बात को टाल दिया करती थी। 

राधे ने एक दिन गम्भीर होकर  सरकार से कहा– "देखो मुझे नहीं पता तुम कौन हो, क्या चाहती हो, तुम मेरे बारे में इतना सब कुछ कैसे जानती हो, और अगर तुम आगे मुझसे दोस्ती रखना चाहती हो तो तुम्हें अपना वास्तविक परिचय तो देना ही होगा अन्यथा मैं तुमसे बात नहीं करूँगा।" 

सरकार ने पहली बार राधे की बात को गम्भीरता से लेते हुए कहा– "तुम नाराज़ क्यूँ होते हो, तुम्हें मेरा परिचय चाहिए तो दिसम्बर की दो तारीख़ को मैं तुमसे ख़ुद मिलने आ जाऊँगी। इतना इंतज़ार तो कर ही सकते हो जब इतने दिनों से कर रहे हो तो कुछ दिन और कर लो।" 

सरकार की बात पर राधे ने ग़ौर किया तो उसे पता चला कि दो दिसम्बर को तो उसके परिवार में ही किसी की शादी है; अर्थात् सरकार मेरे ही रिश्तेदारों में से है।

अब राधे को इन्तज़ार था दो दिसम्बर का। उसने सरकार को बता दिया था कि तुम मेरे ही रिशतेदारों में  से एक हो और कहाँ से हो, कौन हो सब जान गया हूँ।

चूँकि दोनों में अब जान-पहचान हो गयी थी, हालाँकि राधे ने अभी तक उसको देखा नहीं, सिर्फ़ बातें ही हो रहीं थीं। 

दिसम्बर का महीना शुरू होने से कुछ दिन पहले सरकार ने पूछा– "हम पहली बार मिलने वाले हैं तो मेरे लिये क्या उपहार लेकर आओगे?" 

राधे ने मुस्कुराते हुए कहा– "तुम ही बता दो तुम्हें क्या चाहिए।" 

"नहीं, तुम्हें जो सबसे अच्छा लगे वो ले आना लेकिन देना सबके सामने पड़ेगा और ऐसा कर पाओ तो ही उपहार लाना," सरकार ने कहा। 

राधे ने कहा, "ठीक है ले आऊँगा, सबके सामने तुम्हें दे भी दूँगा और कुछ?"

"नहीं, अभी इतना ही काफ़ी है,"  सरकार ने कहा।

इधर अब दोनों की मुलाक़ात की घड़ी नज़दीक आ रही थी और राधे भी सरकार के लिये एक छोटा सा उपहार ले आया था। 

नवम्बर माह का अन्तिम दिन, राधे अपने छोटे भाई व माँ के साथ शादी में पहुँचा। पहुँचते ही उसे जिस पल का इंतज़ार था, जिसे देखने के लिये कितने लम्हे उसने बेचैनी से गुज़ारे, जिसके लिये वो उस शादी में आया था, आख़िरकार वो उसके सामने थी।

सरकार के  केश कुछ बिखरे हुए, एक लट बार-बार उसके कोमल होंठों को छू रही थी। उसकी मृगनयनी सी आँखें, उसका  हल्का कत्थई रंग का सलवार सूट, उसकी ख़ूबसूरती में चार चाँद लगा रहा था और उसका श्याम वर्ण राधे को उसकी ओर खींचे जा रहा था। लेकिन सरकार  अपनी ही धुन में मस्त, दुनिया से बेख़बर दुल्हन के हाथों में मेहंदी लगा रही थी। 

उस समय तो सरकार ने राधे को देखा तक नहीं और कुछ ही देर में वो उठकर दूसरी जगह चली गयी। राधे ने सोचा अभी थोड़ा शरमा रही होगी इसलिए चली गयी।

चूँकि शादी का माहौल था और रात को नाचने–गाने का कार्यक्रम भी था। शाम के लगभग 4:30 बजे सबने मिलकर दाल-बाटी बनाना शुरू किया। शाम को 7 बजे तक सबने भोजन कर लिया था और उस समय तक डीजे  वाला भी आ चुका था तो सभी तैयार होकर घर के बाहर आँगन में जमा होने लग गये। 

राधे भी तैयार होकर सरकार का इंतज़ार कर रहा था। कुछ ही देर बाद सरकार भी दुल्हन के साथ नीले  रंग का लहँगा पहने हुए बाहर आयी जो कि राधे का पसंदीदा रंग था। राधे की लगभग हर दूसरी वस्तु नीले रंग की होती थी और आज तो सरकार खुद राधे के रंग में रँगकर आयी थी ऐसे में राधे की ख़ुशी का ठिकाना कैसे रहता। 

दरअसल दोनो जो लफ़्ज़ों  में बयान नहीं कर पा रहे थे, वो अब एक-दूसरे को इशारों में कह रहे थे। दोनों एक-दूसरे के मनोभावों को जानते थे लेकिन कहने से डरते थे। 

ख़ैर अब नाच गाना शुरू हो गया था और  जमकर ठुमके लग रहे थे। इसी बीच राधे की बहनें जो कि  कोई बैंक लुटने वाले लुटेरे हों, ऐसा वेश बनाकर आयीं और उसे भी अपने साथ ख़ूब नचाया। दरअसल गाँव की शादियों में एक परम्परा होती है जिसमें औरतें वेश बदलकर खेल-तमाशे करती हुई प्यार से गालियाँ देती हैं लेकिन इस समय नाच गाना चल रहा था। इसमें मज़ेदार बात यह थी कि राधे कि बहनों के साथ सरकार भी थी और  उसी ने राधे के साथ ख़ूब ठुमके लगाये। लेकिन राधे इस बात से अनजान ही रहा। 

अगली सुबह जैसा कि सरकार ने कहा था कि कुछ उपहार लाओ तो सबके सामने देना अन्यथा मत लाना, राधे उठते ही यही सब सोच रहा था कैसे सबके सामने उसे उपहार दे और किसी को पता भी न चले। तभी दुल्हन का भाई हरीश जो सरकार की बुआ का लड़का था, आया और राधे से बोला–  "सरकार के पास एक घड़ी है और वो लड़कों की घड़ी है। मैंने उससे माँगी लेकिन उसने कहा कि ’मुझे  दूसरी घड़ी लाकर दे और  ये ले जा’। अब तू बता क्या करूँ?"

हरीश की ये बात सुनकर राधे की सारी समस्या ही दूर हो गयी। राधे के दिमाग़ में एक ख़ुराफ़ाती विचार आया, उसने  बड़ी ही चतुराई से कहा– "हरीश देख ऐसा है कि मेरे पास एक घड़ी है लेकिन वो किसी को देने के लिये लाया था। अभी सरकार को यही दे दे और उसकी घड़ी तू ले ले।" हरीश भी आसानी  से राधे की बातों में आ गया। दोनों एक साथ आये, जहाँ परिवार के सभी  लोग बैठे अपनी-अपनी बातों में व्यस्त थे। वो सीधा सरकार के पास गये और उसे घड़ी दे आये। इस तरह राधे ने सबके सामने घड़ी देकर अपनी बुद्धिमत्ता का परिचय दिया। सरकार को यक़ीन ही नहीं हुआ कि राधे सच में उसके लिये उपहार लाया है क्योंकि उसने सिर्फ़ एक ही बार वो भी मज़ाक में कहा था, ख़ैर अब तो घड़ी सरकार के हाथ में आ गयी थी।

शादी का अन्तिम दिन शेष रह गया था, बारात आने वाली थी। सभी सज-धज कर बारातियों के स्वागत के लिये सज्ज हो चुके थे। कुछ ही देर में बारात आ गयी और  समस्त रीति-रिवाज़ों के साथ शादी की रस्म शुरू की गयी। विवाह के फेरों तक राधे और सरकार आमने-सामने बैठे एक दूसरे को निहार रहे थे, मानो खुली आँखों से स्वयं की शादी होते देख रहे हों। 

इसी बीच  बैठे-बैठे राधे को कब नींद आ गयी पता ही नहीं चला और जब तक नींद खुली सरकार जा चुकी थी। राधे को अब कुछ अच्छा नहीं लग रहा था क्योंकि सरकार से वो एक पल भी बात नहीं कर पाया था उसने सोचा था कि शादी के बाद जब सब बिखर जायेंगे तो कुछ पल उसके साथ बिताऊँगा। लेकिन उसका ये सपना ही बिखर कर रह गया। 

अगली सुबह राधे वापस अपने शहर जयपुर लौट आया लेकिन वो ख़ुश नहीं था क्योंकि सरकार ने उसके बाद उससे बात ही नहीं की। 

एक दिन अचानक सरकार का सन्देश आया जिसमें लिखा था– "मेरे घर वाले मेरी सगाई कर रहे हैं, और लड़का भी पसंद करके चला गया है, मैं तुम्हारे अलावा किसी के साथ नहीं रहना चाहती, और  मैं ये सब घरवालों को कह भी नहीं सकती, न ही लड़के में कुछ कमी बता सकती हूँ क्योंकि लड़का सरकारी नौकरी करता है।" 

राधे की आँखों से आँसुओं का समंदर उमड़ रहा था, उसका सब कुछ मानो किसी ने छीन लिया हो, उधर सरकार का भी यही हाल था। 

लेकिन दोनों अपने-अपने परिवार की इज़्ज़त की ख़ातिर मौन थे सिवाय आँसुओं के उनके पास कुछ नहीं बचा था। उनका जो एक सपना था अब सपना ही बनकर रह गया था। उनके ख़्वाबों का महल अब टूट रहा था। हाँ, इतना ज़रूर था कि अभी सरकार की सगाई नहीं हुई थी तो दोनों  एक ही दुआ कर रहे थे किसी तरह ये सगाई न हो . . .।

लगभग दो महीने बीत चुके थे और  दोनों की उम्मीदें भी टूट गईं थीं। आँसुओं के साथ-साथ मानो उनके ख़्वाब भी बहे  जाते थे। हालात ऐसे थे  कि दोनों न किसी से कुछ कह सकते थे न कुछ कर सकते थे बस जो हो रहा था उसे चुपचाप देख ही सकते थे। हाय राम . . . ! इतनी लाचारी . . . इतने आँसू और दोनों मौन . . . ।

दोनों की बातें अब बन्द हो चुकीं थीं  मानो कभी एक-दूसरे से कभी  मिले ही न हों।

उधर सरकार की सगाई के लिए लड़के के परिवार के लोगों  का आना-जाना शुरू हो चुका था। हालाँकि अभी सगाई की रस्म नहीं हुई थी, लेकिन दोनों परिवार के लोग इस रिश्ते के लिये राज़ी थे।  सब कुछ लगभग तय हो चुका था यहाँ तक कि शादी कब होगी इस पर भी चर्चा शुरू होने लगी थी।

लेकिन कहते हैं न, रिश्ते ऊपर वाले की मर्ज़ी से ही होते हैं। ये बात यहाँ  यथार्थ प्रतीत होने लगी थी। इसका एक कारण तो ये था कि सरकार का परिवार गाँव में रहता था और खेती करता था। जब सगाई की बात पक्की होने वाली थी उस समय  फसल काटने का समय आ चला था और दूसरा कारण ये था कि सरकार इस रिश्ते से बिल्कुल भी ख़ुश नहीं थी। और  इसी समय कोरोना महामारी से इधर-उधर आना-जाना मुश्किल हो रहा था। 

कुल मिलाकर हालात सरकार के पक्ष में जाते दिख रहे थे। लेकिन अभी भी कुछ कहा नहीं जा सकता था कि रिश्ता नहीं हो। 

सरकार इस अजीब सी कशमकश में उलझ गयी थी। उसे समझ नहीं आ रहा था वो अपने मन की बात घरवालों को कैसे बताये! सरकार चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रही थी। लेकिन उसे उम्मीद ज़रूर थी कि सगाई नहीं होगी। उसने स्वयं भगवान को चुनौती दे दी थी कि अगर भगवान कहीं हैं और वे प्रेम समझते हैं तो मुझे भी मेरा प्रेम वापस लौटा दें। 

सरकार की ये पुकार एक पवित्र और निश्छल मन की पुकार थी। जिसे शायद भगवान भी अनसुना नहीं कर सके। लगा जैसे भगवान स्वयं अपने अस्तित्व को साबित करने के लिये मजबूर हो गये हों। 

कुछ दिन बाद ही  सरकार ने राधे को सन्देश भेजा और कहा– "एक ख़ुशख़बरी है सुनाऊँ क्या . . . ?"

राधे जो कि पहले से ही उदास और दुखी रहता था, सरकार का सन्देश देख कर बोला– "सगाई हो गयी क्या?"  राधे इसके अलावा और सोच भी क्या सकता था!

ख़ैर राधे की बात सुनकर सरकार को ग़ुस्सा आया और बोली– "पागल हो गये हो क्या? और तुम्हें क्या लगा इतनी आसानी से छोड़ दूँगी? मैंने तुम्हारे साथ जो ख़्वाब देखे हैं, उन्हें पूरा करके ही रहूँगी और हाँ सुनो ख़ुशख़बरी ये है कि  सगाई नहीं हो रही मेरी . . .  दादी ने आज मना कर दिया . . . लेकिन उस लड़के के पिताजी ने दादी को बहुत भला-बुरा बोला . . . पर फिर भी दादी ने मेरी ख़ुशी के लिये ये सब सहन कर लिया क्योंकि मैं हर रोज़ अपने घर वालों से और सारे रिश्तेदारों को इस रिश्ते के लिये मना ही करती आयी हूँ। बहुत कुछ सुनना भी पड़ता था मुझे पर फिर भी मैं सुनती रही।"

राधे को सरकार की बातों पर विश्वास नहीं हो रहा था क्योंकि रिश्ता अच्छा-ख़ासा था और  दोनों परिवार के लोग भी राज़ी थे फिर रिश्ता टूट कैसे सकता है?

राधे ने कहा, "क्यूँ मज़ाक करती हो? ऐसा हो ही नहीं सकता।" 

"अरे! क़सम से मैं झूठ नहीं बोल रही हूँ सच में रिश्ता टूट गया है! और तुम क्या जानो मैंने कैसे-कैसे बहाने बनाये और क्या-क्या नहीं किया इस रिश्ते को टालने के लिये।  मैंने स्वयं भगवान तक को नहीं छोड़ा तुम्हें पाने के लिये। मैं भगवान को चुनौती देकर आयी थी कि अगर प्रेम का पाठ तुमने लिखा है और तुम ही प्रेम हो तो तुम मेरा प्रेम मुझसे कैसे छीन सकते हो? अब तुम अपना हुलिया सुधारो बिल्कुल कबीर सिंह बन बैठे हो . . . ," सरकार ने कहा।

सरकार की बातें सुनने के बाद राधे की खुशी का ठिकाना न रहा। उसने सोचा ही नहीं था सरकार उसकी ज़िन्दगी में वापस कभी आ पायेगी। लेकिन ये सब सच हो रहा था। उसकी आँखों में आँसू थे। वो अकेला ही ख़ुशी के मारे उछल-कूद कर रहा था, नाच रहा था। उसको यक़ीन नहीं हो रहा था कि सरकार इतना सब कुछ मुझ जैसे पागल के लिये कर सकती है; लेकिन उसका सपना सच हो रहा था। सरकार उसके सपनों को साकार करने उसकी ज़िन्दगी में वापस आ चुकी थी।

अब राधे की बारी थी कि वो इस अवसर को हाथ से न जाने दे। क्योंकि वो ऐसी ग़लती एक बार पहले कर चुका था और इसे दोहराना नहीं चाहता था।

राधे ने अगले ही दिन अपनी माँ से बात की और माँ ने पिताजी से। इस तरह आख़िर में बात सरकार के घर पहुँच गयी। इस तरह दोनों की प्रेम कहानी सोशल मीडिया से शुरू होकर शादी के पवित्र बंधन  तक पहुँच गयी।

अब कोरोना महामारी से राहत मिलने का इंतज़ार है . . .  बाक़ी तो सब तैयार है . . . !

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