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फ़ेसबुकोहलिक की टाइम लाइन से

आधे अधूरे उठते ही बिस्तर पर से- 

पाँच बज कर पाँच मिनट-चारपाई पर से ही मेरे तमाम आभासी फ़ेसबुकिया मित्रों को मेरा प्यार भरा नमस्कार! आपसे यह बात शेयर करते हुए मुझे नींद आने का सा अहसास हो रहा है कि मित्रो! आज अपुन को सारी रात बड़ी मुश्किल से नींद आई। बीच में ही ’ऑल आउट’ ख़त्म हो गई। उसके बाद कान के पास कोई रूँ-रूँ करता रहा। पहले तो डरा, कहीं कोरोना तो नहीं? यह सोचते ही मैं एक पल गँवाए बिना साँस बंद कर सो गया। कुछ देर बाद जब कान खोले तो रूँ-रूँ कहीं नहीं। हो सकता है कोरोना मुझे मरा समझ चला गया हो। आदमी को जब-जब अपने भले के लिए लगे, मरकर भी देख लेना चाहिए। जीकर तो हम हर पल देखते हैं। मेरा मतलब है कि उस्तादी कर लेनी चाहिए-टक।

पाँच बजकर चालीस मिनट - मित्रो! बड़ी मुश्किल से शौच से मुक्त हुआ हूँ। रात को खाया तो तरल ही था फिर पता नहीं कैसे कब्ज़ हो गई? मित्रों से आग्रह है कि रात को क्या खाना चाहिए, क्या नहीं इस बारे विस्तार से बताएँ ताकि सुबह पेट एकदम साफ़ हो जाए। शौच मुक्त होने के बाद वाह! चेहरे पर कैसी रौनक़ आती है, ट्वायलट में सेल्फ़ी सहित - टक। 

पाँच बजकर पचास मिनट - अपुन ने योगा किया। योगा करते साँस फूल गई। मित्रो! योग का हमारे जीवन में बहुत महत्व है। हम ज़िंदगी में कुछ करें या न, पर हमें योगा ज़रूर करना चाहिए। योगा हमारे दिमाग़ में जंग नहीं लगने नहीं देता। योग हमारी टाँग में जंग नहीं लगने देता। अच्छा चलता हूँ, पसीना पड़ रहा है। बीवी भीतर से आवाज़ देर रही है। वह नहीं चाहती कि उसका पति फ़िट रहे। हर बीवी को अपने फ़िट पति से चौबीसों घंटे ख़तरा जो रहता है-टक।

सात बजकर तीस मिनट - मित्रो! अपुन चाय पीते हुए। चाय न मीठी है न फीकी। न गरम, न ठंडी। चाय में चाय पत्ती न ज़्यादा है न कम। चाय में दूध कुछ कम है। जब मैंने इस बारे बीवी से पूछा तो उसने बताया कि दूध तो उसने चाय में उतना ही डाला है जितना रोज़ डालती है। हो सकता है, आज ग्वाले से दूध में पानी जल्दी-जल्दी में तय मात्रा से अधिक पड़ गया हो। कोई बात नहीं। जल्दबाज़ी में ऐसा किसीसे भी हो सकता है। पर मित्रो! चाय बनी बेस्वाद स्वाद है। आप भी मेरे कप से चाय सुड़कते आभासी चाय का आनंद लेकर चुस्ती को प्राप्त होइए-टक। 

आठ बजे -चाय पीने के बाद मन में कविता फूट रही है। लग रहा है मित्रों से साझा कर ही लूँ। तो पेश है मित्रों के लिए चाय की तरह ताज़ी कविता-

आज जो चाय पी
न वह गरम थी 
न ठंडी।
आज जो चाय पी
वह न मीठी थी 
न फीकी। 
आज जो चाय पी
वह न चाय सी थी 
न वाय सी।
फिर भी मैंने 
चाय का मन रखने के लिए वह चाय पी।
चाय पीने से ज़रूरी है चाय का मन रखना। 
चाय का क्या
वह चाय सी हो या न
पर उसे पीना हम सबकी मजबूरी है- टक।

नौ बजे - मित्रो! पेश है। (सचित्र) गरमा-गरम पराँठे। आप तक ख़ुशबू आ रही है न? न आ रही हो तो आभासी ख़ुशबू से मन फुसला बहला लीजिए। ऐसे पराँठे इस वक़्त पहली बार खा रहा हूँ। गरमा-गरम पराँठे देख कर खाने चाहिएँ, भले ही वे देशी घी में तले गए हों। अगर गरमा-गरम पराँठे खा लिए जाएँ तो इससे मुँह जलने का डर रहता है। गरम पराँठा खाने से पहले उसे फूँक मार कर ठंडा कर लेना चाहिए। मुँह जल जाए तो पराँठों के बाद ठंडी चाय भी फूँक फूँक कर पीनी पड़ती है-टक।

दस बजे - बीवी बहाना बना पड़ोस में चली गई है। अपुन (सचित्र) आटा गूँधते हुए। आटा गूँधने के लिए ज़रूरी है आप अपने कुरते के बाजू ऊपर चढ़ा लें ठीक ढंग से। उसके बाद आटे में पानी थोड़ा-थोड़ा डाला जाए, नहीं तो आटा पतला होने के चांस बने रहते हैं। अपुन आटा गूँधते हुए कोई रिस्क लेना नहीं चाहते। हालाँकि गूँधने का अपना अनुभव बहुत है। आपको भी ध्यान रहना चाहिए कि हर जगह रिस्क चलेगा तो चलेगा, पर आटा गूँधते हुए नो रिस्क। आटा गूँधने के बाद सोच रहा हूँ कि ख़ुद नहाऊँ या कुत्ते को नहलाऊँ? अपने नहाने से ज़रूरी कुत्ते को नहलाना है, कुत्ते को नहाने के लिए मनाना है। कुछ देर बाद आपको अपने या कुत्ते के नहाने की ताज़ा जानकारी देता हूँ। ये भी सोच रहा हूँ कि मैं और मेरा कुत्ता एक ही साथ नहा जाएँ तो कैसा रहेगा? मेरे हिसाब से अच्छा ही रहेगा। जल बच जाएगा। जल है तो जीवन है। आओ बेहतर कल के लिए जल बचाएँ। चार जने एक ही बाल्टी पानी से नहाएँ -टक।

ग्यारह बजे - अपुन ऑफ़िस जाएँ या न जाएँ, इसी उधेड़बुन में। मामला गंभीर। घर में बीवी तो बाहर कोरोना। ऐसे में आप सलाह दें कि आज मुझे ऑफ़िस जाना चाहिए या नहीं। वैसे ऑफ़िस जाऊँ तो क्यों? न जाऊँ तो क्यों? कोरोना से डरते हुए वहाँ जाना मात्र खानापूर्ति ही तो है। सवाल एक सा है। और मैंने आधा तय कर लिया कि. . . - टक। 

बारह बजे - माफ़ करना दोस्तो! अबके पोस्ट डालने में मैंने बहुत देर कर दी। पर पोस्ट डालने से पहले बहुत देर तक सोचा। मैंने फिर सोचा। और बहुत देर सोचते रहने के बाद मैंने फिर सोचा। आख़िर में सोच-सोच कर जब मेरे बुरे हाल हो गए तो मैंने तय कर ही लिया कि मैं आज ऑफ़िस न जाऊँ, भले ही मेरा ऑफ़िस जाना बहुत ज़रूरी हो। .... और मैं गया ही नहीं। इसलिए मैंने पैंट प्रेस नहीं की, कमीज़ प्रेस नहीं की। अब, सारा दिन अपुन टीवी के आगे तो टीवी अपुन के आगे। दोस्तो! वैसे ऐसे संयोग बहुत कम होते हैं। जब हम एक दूसरे के आगे होते हैं- टक।

एक बजे -मित्रो! एक बज गया। लंच टाइम हो गया। आप घर में हों या ऑफ़िस में, लंच का टाइम आगे पीछे नहीं होना चाहिए। अपन तो सारे काम छोड़ लंच ज़रूर करते हैं। दाँव लगे तो औरों का भी मार लेते हैं। हम आख़िर कमाते किसके लिए हैं? इस लंच, डिनर, ब्रेक फ़ास्ट के लिए ही तो। तो लंच में बीवी गरमा-गरम पूड़ी आलू बनाने में जुटी हैं। आज मज़ा आएगा लंच का- टक।

दो बजे - मित्रो! आज लंच में पूड़ी आलू कुछ ज़्यादा ही हो गए। बने ही इतने स्वाद थे कि अपने को ज़्यादा खाने से रोक न सका। अच्छा तो, अब ज़रा सुस्ता लेते हैं। आप भी तब तक सुस्ता लीजिए- टक।

चार बजे - मित्रो! सोने की बहुत कोशिश की। पर नींद नहीं आ रही थी। दिमाग़ में लेटे-लेटे भी कविता कौंधती रही। आपसे फ़ेसबुक पर शेयर तो करना चाहता था पर मोबाइल चार्जिंग में लगा था। हाथों से लिखने के दिन तो अब गए। जितने को मोबाइल चार्ज हुआ कविता मेरे दिमाग़ से निकल किसी और के दिमाग़ में चली गई। ये कविता भी न! इसे कितना ही पकड़ने की कोशिश करो, पर जो नहीं रुकती तो नहीं रुकती। कोई बात नहीं। हमें कविता को पकड़ना आता है। कल तो पकड़ ही लेंगे- टक।

पाँच बजे - बीवी के आदेश पर अपुन सब्ज़ीमंडी में। मित्रो! यहाँ से मैं आपको सब्ज़ीमंडी का सीधा हाल सुना रहा हूँ। सब्ज़ीमंडी में सब्ज़ी ख़रीदने वाले कम तो बेचने वाले अधिक। समझ नहीं आ रहा क्या सब्ज़ी ख़रीदूँ? पत्नी ढूँढ़ने के बाद सबसे जोख़िम का दूसरा कोई काम है तो बस, ताज़ी सब्ज़ी ढूँढ़ना। क्या है न कि इन दिनों रंग चढ़ी सब्ज़ियाँ बाज़ार में आने लगी हैं जिन्हें देख कर तेज़ से तेज़ आँखें भी सहज ही धोखा खा जाती हैं। आप मेरी सब्ज़ी ख़रीदने में जो सहयोग करें तो आपका शुक्रिया रहेगा -टक। 

छह बजे -(सचित्र) मित्रो! आपका मित्र सुबह के लिए सब्ज़ी काटते हुए। सब्ज़ी काटना बहुत जोख़िम का काम है। सब्ज़ी ध्यान से न काटी जाए तो उँगली कटने की संभावना प्रबल बनी रहती है। पर नाक कटने का डर क़तई नहीं रहता। ये देखो! मैं सब्ज़ी काट रहा हूँ। कितनी सावधानी से। कितना सँभल-सँभल कर। आप भी सँभल कर नाक, सॉरी सब्ज़ी काटिएगा। किचन में बीवी का हाथ बटाने वालों को मेरी शुभकामनाएँ- टक। 

सात बजे - दोस्तो! अपनी सेहत का गधे को भी ध्यान रखना बहुत ज़रूरी है। सेहत के बिना शेर भी गीदड़ हो जाता है। कुत्ते तक उसके पीछे पड़ जाते हैं। इसीलिए (सचित्र) आपका मित्र सैर को जाते हुए। अभी जूतों के फीते बाँधने बाक़ी हैं। हर आदमी को सारे काम छोड़ ज़िंदगी में कम से कम एक बार सैर ज़रूर करनी चाहिए। सैर करने के कई प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष लाभ होते हैं। इससे कई बार मन चाहे लोग मिल जाते हैं। सैर कीजिए, स्वस्थ रहिए। नए चेहरों के साथ मस्त रहिए। सेहत सबसे बड़ी सैलरी है-टक।

आठ बजे - मित्रो! समझ नहीं आ रहा कौन सा न्यूज़ चैनल देखूँ? हर चैनल पर सनसनी ही सनसनी! कोरोना ही कोरोना! यमराज को इधर-उधर से मरने वालों के आँकड़े इकट्ठा करने की ज़रूरत नहीं। वे इन दिनों टीवी पर मरने चालों के अपडेट्स मज़े से ले सकते हैं। वैसे सनसनी दिमाग़ के लिए बहुत ज़रूरी होती है। बिन सनसनाहट के जीवन बेकार है। सनसनी है तो जीवन है। मैं कौन सा न्यूज़ चैनल देखूँ, मित्रों की राय का इंतज़ार रहेगा- टक।

नौ बजे - मित्रो! डिनर करने जा रहा हूँ। गैस्स कीजिए आज डिनर के नाम पर हमारे यहाँ क्या बना होगा? पर मुझे पूरा विश्वास है कि जो भी बना होगा मसालेदार ही बना होगा। मसालों के बिना हमारे यहाँ कुछ नहीं बनता। हमारे घर में बने डिनर की ख़ुशबू तो आपको आ ही रही होगी। ज़िंदगी और दाल-सब्ज़ी में मसाले अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। आप भी डिनर का मज़ा लीजिए- टक। 

दस बजे - मित्रो! सोने को मन तो नहीं कर रहा, पर सोना ही पड़ेगा, सुबह उठने के लिए। अगर सुबह जल्दी उठने की जल्दी न होती तो बारह बजे भी न सोता। खिड़की के पास कोई फिर रूँ-रूँ करने लग गया है। मच्छर ही होगा। आप भी ’ऑल आउट’ जलाकर सोएँ। नहीं तो दिमाग़ जलाना पड़ सकता है। सोए-सोए भी याद रखें! मच्छरों के काटने से कुछ भी हो सकता है। आदमी का काटा आजकल बच सकता है, पर मच्छरों के काटे की कोई गारंटी नहीं। इसलिए बचाव में ही बचाव है। ओके। सी यू! गुड नाइट! स्वीट ड्रीम! आपकी रात मंगलमय हो। बीच में नींद खुली तो अगली पोस्ट जल्दी ही- तब तक के लिए ख़ुदा हाफ़िज- टक। 

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