फ़ैसले की घड़ी जो आयी हो
शायरी | ग़ज़ल नीरज गोस्वामी27 Jan 2008
झूठ कहने की चाह की जाए
ज़िंदगी क्यों तबाह की जाए
दिल लगाया तो ये ज़रूरी है
चोट खा करके वाह की जाए
वो अदाओं से मारते हैं पर
चाहते ये न आह की जाए
है ख़ुदा गर बसा तेरे दिल में
काहे काबे की राह की जाए
हो न गर जो उम्मीद मरहम की
किस लिये फिर कराह की जाए
फ़ैसले की घड़ी जो आयी हो
अपने दिल से सलाह की जाए
चाँदनी हो या रात हो काली
संग तुम्हारे निबाह की जाए
जो मिला उस में खुश रहो नीरज
ना किसी से भी डाह की जाए
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