गणतंत्र
काव्य साहित्य | कविता ज़हीर अली सिद्दीक़ी1 Mar 2019
इतिहास राजतंत्र का
परिवेश गणतंत्र का
बदलाव है परिवेश में
परिवेश ही आरम्भ है।
परिवेश राष्ट्रवाद का
आवेश है विकास का
कुरीतियों के नाश का
अवसाद किस बात का?
प्रसारित कुरीतियाँ
अवतरित है नीतियाँ
नीतियों से आस है
आस का आवास है।
निर्धनता का नाश हो
अभिजात्य का विनाश हो
विषमता का प्रवास हो
समानता का वास हो।
एकजुटता के रंग में
तिरंगा हो संग में
बन्धुत्व की बयार हो
ख़ुशियाँ अपार हों।
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टिप्पणियाँ
Viphai 2019/04/17 04:24 PM
Nice piece of writing
mohd husain 2019/03/24 01:37 PM
bhaiya g meri jigyasa h ki main pp ki ek kabita rajnit pe padhu
Rajesh Patel 2019/03/04 09:18 AM
Nyc lines .. शब्द का चुनाव काफी अच्छा है.. ऐसे ही लिखते रहिये
Anwar Ali 2019/03/04 05:58 AM
Nice 1
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Ramsuresh 2019/06/16 12:09 AM
Bahut lajabab lekhani kavi ji