गर्मी की चुड़ैल
काव्य साहित्य | कविता रामदयाल रोहज1 Jun 2020
विशाल दानव देह
तीखे लम्बे लू के नाख़ून
खुले लम्बे लम्बे बाल
ख़ून से सने हुए होठ
गर्मी की चुड़ैल घूम रही है
चारों तरफ़
अपना तांडव मचाती
सम्पूर्ण जलाशयों को पीकर
फेंक रही है भयंकर आग
अपने भोंडे मुख से
धोबे भर भर कर पी रही है
जीवों जन्तुओं का रक्त
हारे सिपाही दरख़्त सह रहे हैं
चुपचाप भीषण प्रहार
छाया सिकुड़कर चली गई है
होशियार तनों की छाया में
भयभीत लोग छुप गये हैं
दरवाज़े उढ़काकर
घर घर में बैठा लिए है कूलर तांत्रिक
मंत्रों से हो रहे है
बचाव के उपाय
लगातार किया जा रहा है
अभिमंत्रित जल का छिड़काव
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