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गीत क्रांति के

आँखों में आवाज़ों में
तुम्हें पढ़ा था भगत सिंह
दिल से छिड़ते साज़ों में।
 
गाँधी आये थे पुस्तक में
तुम रोज़ सिरहाने रहते थे
सुखदेव और राजगुरु से
आहिस्ता से कहते थे
जीवन का अर्थ तभी प्यारे
देश के जब वो काम आए
तुम हँसते संग मेरे रहना
कि मौत भी पल शरमा जाए।
तुम अंत समय मुस्काते रहे
गीत देश के गाते रहे
पाई अमरता जवानी में
जनता की आवाज़ों में।
 
उद्धम सिंह, जलयान छिपे
सागर में  कितने दिन तुम बहे
जलियांवाला की चुभती किरचें
आँखों में थे सहते रहे,
शपथ मिट्टी की जो ली थी
उसका तुमने सम्मान किया
काट पन्नों को पुस्तक के
पिस्तौल को छिपा लिया
ज़ंजीरों में बँधे हुए
तुम भी तो थे ये कहा करते
फाँसी का कोई ख़ौफ़ नहीं
यह देश को है बलिदान मेरा
गर्व मुझे है यह कहते
डायर से कायर गोली से
उद्धम की ही मरा करते।
आँखों में आवाज़ों में
पढ़ा तुम्हें भी उद्धमसिंह
दिल से छिड़ते साज़ों में।
 
आज़ाद घिरे फिर भी न डरे
यह कथा अनेकों बार सुनी
काशी छोड़ जुड़े क्रांति से
गाँधी को सहयोग किया, फिर
भगत सिंह का बनकर संगी
क्रांति का रुख़ मोड़ दिया
अपने ही साथी की चुगली
काल तुम्हारा बन बैठी
देश का था दुर्भाग्य यही
कायर थे यहाँ सदा से रहे।
पर अंत समय तक हिम्मत से
तुम जुटे रहे और डटे रहे।
अपनी कनपटी बन्दूक चलाई
दुश्मन के न हाथ लगे।
उस पेड़ के पीछे से तुम भी तो
अक़्सर ही यह कह देते हो
भेदी एक ही भारी है
दुश्मन हो चाहे पचासों में
आँखों में आवाज़ों में
आज़ाद तुम्हें भी पढ़ा यूँ ही
दिल से छिड़ते साज़ों में।
 
कितनी मन ने हर बार बुनी
देश के वीरों की छवियाँ
और इन्हें सुनते गुनते
अरमान एक संजो था लिया
भर्ती सेना में होने का
पर हो न सका वो हवि हुआ,
था ऋण स्त्री जाति होने का
न्योछावर देश पर होने का
मुझे नहीं सौभाग्य मिला
हे प्रभु यही विनती है मेरी
किसी विधि देश के काम आऊँ
हँसते जैसे वो झूल गए
मैं भी देश का कर्ज़ चुकाऊँ।
सेवा में बस लगी रहूँ मैं
अपने ही अंदाज़ों में।
आँखों में आवाज़ों में
गीत क्रांति के पढ़े सुने
दिल से छिड़ते साज़ों में।

भावना सक्सैना

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