घर में तलाश कर लिये मौक़े शिकार के
शायरी | ग़ज़ल अहमद रईस निज़ामी3 May 2012
घर में तलाश कर लिये मौक़े शिकार के
बनते हैं तीसमार खाँ बीवी को मार के
लगता है उसकी दाल में काला ज़रूर है
डब्बे बहुत मँगाए हैं उसने आचार के।
इस ज़िन्दगी में कद्र न की आपने मेरी
फोटो लगेंगे देखना मेरे मजार के
पगड़ी, कुलाह और ये दस्तार ही नहीं
रखदी है उनके सामने विग भी उतार के
उनको मेरी मुक्ति की दुआ भी न रही याद
खा पी के चल दिये मेरे घर से डकार के
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