अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

गोली नेकी वाली

"ये दौरे सियासत भी क्या दौरे सियासत है 
चुप हूँ तो नदामत है, बोलूँ तो बग़ावत है" 

आम वोटर चुनाव के वक़्त ऐसे ही सोचता है कि वो क्या बोले, सब कुछ तो बोल दिया है नेताजी ने। नेताजी जवान हैं, स्टाइलिश कपड़े पहनते हैं, कभी मीडिया के लाडले हुआ करते थे, सबको कान के नीचे बजाने की घुड़की दिया करते थे। मगर समय ने ऐसा चक्र ऐसा घुमाया कि आजकल ख़ुद बेचारे क़ानून की चौखट पर हैं। क़ानून से भिड़ना इनका प्रिय शग़ल हुआ करता था कभी, ख़ुद कम भिड़ते थे लोगों को भिड़वाते ज़्यादा थे लेकिन हवा बदल गयी। 

उन्होंने इस बार आपने लिये ज़िम्मेदार विपक्ष की भूमिका चुनी है और उस पर तुर्रा ये कि ये उनका नया ट्रेंडसेटर आइडिया होगा, क्या कहने?

अब कल को देश में यही ज़िम्मेदार परिपाटी चल जाये तो राजनीति से कड़वाहट ख़त्म हो जाये, लोग सिर्फ़ चुनाव लड़ने के लिए लड़ें ना कि सत्ता हासिल करने के लिये। पहले से ये तय हो जाये कि फलां तो सत्ता हासिल करने के लिए चुनाव लड़ रहा है जबकि फलां तो सिर्फ़ सचेत करने और सत्ता पक्ष को उसकी ज़िम्मेदारी का एहसास दिलाये रखने के लिए विपक्ष में जाना चाहता है। अब ये नये क़िस्म का सत्याग्रह होगा जिसमें जीवन के तमाम क्षेत्र में रचनात्मक विरोध शुरू कर देंगे। गोया कोई भी इंटेरनेशनल टूर्नामेंट ना जितवा जाने पर नैतिकता के आधार पर रवि शास्त्री टीम इंडिया के कोच का पद त्याग देंगे क्योंकि सौरभ गांगुली क्रिकेट के सर्वोच्च प्रशासक बन गए हैं। गांगुली के ही आने से महेंद्र सिंह धोनी अब लोगों को टीम से अंदर-बाहर करवाने का खेल विरोध स्वरूप छोड़ देंगे और ख़ुद भी वो मैदान के ही बाहर रिटायर होंगे, जैसे कि उन्होंने गम्भीर, सहवाग, युवराज जैसे खिलाड़ियों को मैदान के बाहर-बाहर ही रिटायर करवा दिया, मैदान पर खेलते हुए रिटायर नहीं होने दिया। रचनात्मक विरोध से ऐसा सदाचार फैलेगा कि बिग बास के घर में लोग साथ में शयन की बाध्यता को त्यागकर धर्म, अध्यात्म पर चर्चा करेंगे। सिंघम सिनेमा के विलेन प्रकाशराज कदाचित किसी दिन दिल्ली की रामलीला में अभिनय करते नज़र आएँ भले ही रावण का ही। तब शायद उन्हें डर लगना बन्द हो जाए क्योंकि वो ख़ुद को अल्पसंख्यक बताते हैं और कहते हैं कि पुष्पक विमान टाइप हेलीकॉप्टर से उतरते राम, लक्ष्मण, सीता के किरदारों को देखकर उनके जैसे माइनॉरिटी डर जाते हैं। किसी ने उन्हें डर लगने पर हनुमान चालीसा पढ़ने की सलाह दी है, क्योंकि सदियों से भारतवासियों का डर हनुमान चालीसा पढ़ने से दूर होता रहा है। रचनात्मक विरोध का अगला क़दम ये होगा कि रामायण  विला में रहने वाली  शत्रुघ्न पुत्री  सोनाक्षी सिन्हा सबको ख़ामोश बोल कर सुन्दर काण्ड का पाठ करेंगी। ये मुहिम यहीं नहीं रुकेगी प्रणव मुखर्जी को देश का प्रधानमंत्री बताने वाली आलिया भट्ट टीवी चैनलों पर बतौर संविधान विशेषज्ञ बुलायी जाएँगी और लोगों को संविधान के उपबंधों को स्पष्ट करेंगी। ये सदाचार जारी रहेगा रितेश देशमुख एडल्ट कॉमेडी से युवाओं को दूर रहने के लिये जागृत करेंगे और थियटर करके लोगों को फ़िल्मों में एक्टिंग कैरियर बनाने की गाइडेंस देंगे। ये कारवां चलता रहेगा जिसमें सनी लियोनी विरोध स्वरूप "बेबी ढोल" के गाने पर डांस करने के बजाय एकादशी के व्रत के बखान बताएँगी। ये रचनात्मक विरोध यूँ रंग लायेगा कि ढिंचक पूजा अब यूट्यूब पर गाने अपलोड करने के बजाय स्टेनोग्राफी का कोर्स करेंगी और लड़कियों को कंप्यूटर पर टाइपिंग स्पीड बढ़ाने की लाइव डेमो देंगी। 

रचनात्मक विरोध का ये स्वर्णयुग हिंदी साहित्य में भी दस्तक देगा तब फ़ेमिनिस्ट पुरुषों को पानी पी-पीकर कोसने के बजाय स्त्रियों को अपनी कार्यकुशलता और दक्षता बढ़ाने पर गाइडेंस देंगी। जिस तरह से हाल में कुछ लेखिकाओं पर कुछ लोगों ने अश्लील और भद्दे कमेंट किये हैं। इसके बजाय खार खाये लेखक, पुनः लेखिकाओं को बहन जी, दीदी जैसे शब्दों से संबोधित करना शुरू कर देंगे। सदाचार का ये कारवां प्रकाशकों की दहलीज़ तक पहुँचेगा वो लेखक के ख़र्चे पर पुस्तक छापने और फिर उसे ख़रीदने पर बाध्य करने के बजाय उसकी पुस्तक निशुल्क छापेंगे उसे रॉयल्टी देंगे और इष्ट मित्रों में बाँटने के लिए पर्याप्त प्रतियाँ भी देंगे। तब कोई सिर्फ़ इस वज़ह से बड़ा साहित्यकार नहीं माना जाएगा कि वो कितनी किताबें ख़रीदवा या बिकवा सकता है। नेकी की ये गोलियाँ वामपंथी साहित्यकार भी खा लेंगे तो बाबर और औरंगज़ेब का बखान बन्द करके मध्यकाल के कुछ अन्य महान नेताओं का ज़िक्र करेंगे। यही नहीं सावरकर और गोवलकर जैसे लोगों का स्वन्त्रता संग्राम पर क्या योगदान है, इस पर इतिहास का पुनर्लेखन करेंगे। ये रचनात्मक विरोध पाकिस्तान तक पहुँचेगा जहाँ की नेशनल असेंबली में महात्मा गाँधी की मूर्ति लगायी जायेगी। पाकिस्तान में अब मूतालिया ए पाकिस्तान और टू नेशन थ्योरी के बजाय साझा इतिहास पढ़ाया जायेगा जो 1947 के पहले का होगा जिसमें स्कूलों में लियाक़त अली नहीं बल्कि भगत सिंह पढ़ाये जाएँगे। 

नेकी की ये गोलियाँ शिक्षा संस्थानों तक भी जाएँगी जहाँ कन्हैया कुमार जैसे लोग देश द्रोह का मुक़दमा लेकर नहीं निकलेंगे, जहाँ टुकड़े-टुकड़े गैंग नहीं बल्कि राष्ट्र सेवा दल जैसी योजनाएँ लेकर निकलेंगे इस देश के युवा। मैं ये सब ख़्वाब देख ही रहा था कि "भारत माता की जय" के नारों से मेरी आँख खुल गयी। कुछ बच्चों ने प्रभात फेरी निकाली थी, उनका हुजूम देखा तभी किसी ने मुझसे कहा "जय श्री राम"। 

मैं सोचने लगा कि ये गोली नेकी वाली कहाँ मिलती है; लेकर सबसे पहले मैं खाता और लोगों में बाँटता। 
उस गोली को याद करके एक शेर याद आया -

"ये नूरे ख़ुदायी है या कोई करिश्मा 
वल्लाह कोई लूट ना ले मासूमियत तुम्हारी"

ये गोली नेकी वाली कहाँ मिलती है, आपको मालूम है क्या. . .?

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'हैप्पी बर्थ डे'
|

"बड़ा शोर सुनते थे पहलू में दिल का …

60 साल का नौजवान
|

रामावतर और मैं लगभग एक ही उम्र के थे। मैंने…

 (ब)जट : यमला पगला दीवाना
|

प्रतिवर्ष संसद में आम बजट पेश किया जाता…

 एनजीओ का शौक़
|

इस समय दीन-दुनिया में एक शौक़ चल रहा है,…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता

हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी

लघुकथा

बाल साहित्य कविता

कहानी

सिनेमा चर्चा

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं