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गिटारवादक

रूसी लोककथा

"रूस देश के किसी गाँव में एक गिटारवादक रहता था। वह प्रतिदिन अपना गिटार लेकर गाँव के चौराहे पर खड़ा हो जाता और गाँव वालों को पुकारकर कहता, "तुम सब मेरा संगीत सुनो। मैं कितना सुन्दर बजाता हूँ।"

लेकिन कोई भी उसका संगीत नहीं सुनता। उसके गिटार से बहुत भौंडे सुर निकलते थे। सब उसे मूर्ख समझते थे और उसकी हरकतों से परेशान रहते थे।

गिटारवादक भी इस बात से बहुत दुःखी था कि गाँव वाले उसका संगीत सुनने नहीं आते। क्यों नहीं आते? क्या उन्हें संगीत की समझ नहीं है या कहीं उसके संगीत में ही कुछ कमी है! हो सकता है गिटार ठीक न हो। इसमें जो लकड़ी लगी है, वह ख़राब हो।

कुछ दिन बाद उसका यह विश्वास पक्का हो गया कि गिटार में जिस लकड़ी का उपयोग हुआ है, वह ख़राब है।

बस, एक दिन अच्छी लकड़ी की तलाश में वह जंगल जा पहुँचा। जब वह चला जा रहा था तब अचानक एक घटना घटी। उसके देखते-देखते आकाश में उड़ता एक पक्षी धम्म से धरती पर आ गिरा। तब उसके कंठ से जो चीख निकली, उसे सुनकर वह गिटारवादक घबरा गया। दौड़कर वह पक्षी के पास पहुँचा। उसे उठाया। देखा, पक्षी बुरी तरह घायल हो गया है। घावों से खून बह रहा है। उसका मन पक्षी के प्रति करुणा से भर उठा। उसने पूछा, "ए आकाश में उड़ने वाले पक्षी! तुम कैसे गिर गए?"

पक्षी ने कराहते हुए उत्तर दिया, "मैं आज उड़ते-उड़ते बहुत ऊपर चला गया था, इतने ऊपर कि नीचे उतरने की शक्ति नहीं रही। इसलिए गिर पड़ा।"

गिटारवादक लकड़ी की बात भूल गया। पक्षी को लेकर सीधा घर आया। उसने ज़ख़्म साफ़ किया, फिर उस पर मरहम लगाया। उसके बाद कुछ खिला-पिला कर उसे नरम बिस्तर पर सुला दिया।

अब नियम से रोज़ वह ऐसा ही करने लगा। उधर गाँव वालों ने एक-दो दिन तो चिन्ता नहीं की, पर अब कई दिन हो गए तो वे परेशान हो उठे- "कहाँ गया वह मूर्ख गिटारवादक!"

एक पड़ोसी ने खिड़की से झाँककर देखा तो पाया कि गिटारवादक बड़े प्यार से पक्षी के घाव धोकर दवा लगा रहा है। "तो यह बात है," पड़ोसी ने सोचा, "चलो, किसी तरह भी हो, अब इस मूर्ख की बकवास तो नहीं सुननी पड़ेगी।"

लेकिन दूसरे ही क्षण वह चिहुँक उठा, "यह पक्षी तो दो-चार दिन में ठीक हो जाएगा और यह मूर्ख हमें फिर तंग करेगा। तो क्या किया जाए? हाँ, यही ठीक रहेगा।" उसने सोच-विचार कर निर्णय किया।

जब थोड़ी देर बाद गिटारवादक दवा लेने बाज़ार गया, पड़ोसी ने अपनी योजना के अनुसार पक्षी को उठाया और कहीं दूर वन में छोड़ आया।

उधर जब गिटारवादक घर लौटा तो पक्षी को वहाँ न पाकर परेशान हो उठा। कहाँ चला गया? अभी तो उसके परों में उड़ने की शक्ति नहीं आई थी। घाव भी पूरी तरह नहीं भरे थे। इधर-उधर लुढ़का भी दिखाई नहीं देता। कहीं बिल्ली तो नहीं ले गई, लेकिन तब तो वह चीखा होगा, फड़फड़ाया होगा, लेकिन कहीं भी तो पर नहीं गिरे हैं।

सोचते-सोचते उसने सारा घर ढूँढ मारा। फिर पड़ोस में गया। सबने अनभिज्ञता प्रकट की। जो पड़ोसी सचमुच पक्षी को उठा ले गया था, उसने तो बड़ी दृढ़ता से कहा, "ज़रूर तुम्हारे पक्षी को कोई जंगली बाज़ उठा ले गया है। वह अब कहाँ मिलेगा। चच्च... चच्च... बेचारा पक्षी।"

गिटारवादक का दिल टूटने लगा। उसकी आँखों के सामने पक्षी के घाव उभर आए। उसके कानों में पक्षी की दर्दनाक चीख गूँजने लगी। एक अनोखा दर्द उसके दिल को मथने लगा। वह गाँव-भर में पूछता घूमा। दर्द बराबर बढ़ता रहा। वह आसपास के गाँवों में भी गया, पर पक्षी को नहीं मिलना था तो नहीं ही मिला। मिला बस दर्द जिसे सहना अब उसके लिए मुश्किल हो रहा था।

आख़िर टूटा दिल और शरीर लिये वह घर लौटा और धम्म से चारपाई पर गिर पड़ा। उसे तब न खाने-पीने की सुध थी, न घर का दरवाज़ा बंद करने की। वह बहुत देर तक बेहोश-सा लेटा रहा। फिर धीरे-धीरे आँखें खोलीं। कमरे के चारों ओर देखा। पाया, एक कोने में उसका तिरस्कृत गिटार पड़ा है।

कई क्षण वह उसे देखता रहा। फिर न जाने क्या हुआ, उसने गिटार को उठा लिया और जैसा उसका स्वभाव था, वह उसे बजाने लगा।

बस, बजाता रहा, बजाता रहा, घण्टे बीते, दिन बीता, रात भी बीत गई, लेकिन उसे कुछ पता नहीं था। उसके दिल में दर्द था और हाथ में गिटार।

जब उसे होश आया, तो उसने देखा कि न केवल उसके गाँव के लोग बल्कि दूर-दूर के गाँवों के लोग उसके घर के बाहर खड़े तन्मय-विभोर उसका गिटार-वादन सुन रहे हैं, और उनकी आँखों से आँसू बह रहे हैं।

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