गुमशुदा की रिपोर्ट
कथा साहित्य | लघुकथा यतेन्द्र सिंह2 Oct 2016
आधुनिक भारतीय नारी का पत्ति दो दिन तक घर नहीं लौटा। मन में अनेक बुरे विचार उठने लगे। वह अपने पति की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखाने के लिए थाने गई। थानेदार को कहा, "साहब मेरा पति को गए दो दिन हो गए अभी तक घर नहीं लौटा।"
"लौट आएगा कहाँ जाएगा? क्या नाम है तेरे पतिदेव का," दरोगा ने पूछा।
"साहब सत्यवान।"
"क्या काम करता था?" दरोगा ने उस महिला की ओर देखकर कहा।
"मजदूरी करता है।"
"मजदूर है तो कहाँ जाएगा? किसी महिला के साथ उसका चक्कर तो नहीं है?"
"साहब मेरा आदमी सीधा है। मेरे अलावा किसी की तरफ आँख उठाकर देखता नहीं।"
"तुम्हे कैसे मालूम कि तेरा आदमी सीधा है? इस जगत में कोई सीधा नहीं। जानवर तक सीधे नहीं हैँ फिर वो कैसे हो सकता है? तेरी वज़ह से भी जा सकता है।"
"साब मेरी वज़ह से?" महिला ने सकुचाते हुए कहा, "साहब हम इक-दूसरे से ख़ूब प्यार करते हैं।"
"शादी को कितने साल हो गए।"
"पूरे चार साल हो गए।"
"कितने बच्चे हैं?"
"अभी तो एक भी नहीं," महिला ने सकुचाते हुए कहा।
"शादी को चार साल हो गए गोद सूनी है। क्या ख़ाक प्रेम करते हो? प्रेम तो वह होता है कुछ ही दिनों में खेत में फसल लहलहा उठे। तेरा क्या नाम है?"
"साहब मेरा नाम सावित्री देवी है।"
"वाह क्या जोड़ी है सत्यवान सावित्री की। कहीं जंगल में लकङी काटने गया होगा। जंगलात वालों ने पकड़ लिया होगा। रिपोर्ट लिख लूँगा। सुविधा शुल्क लगेगा।"
"कैसा शुल्क? सरकार देती है फिर हम से क्यों?"
"आदमी तेरा गुम हुआ है, सरकार का नहीं! जल्दी कर हमें हज़ारों काम हैं। मेरे लिए कुछ नहीं करेगी तो रिपोर्ट को एक कोने में रख दूँगा सड़ने के लिए," कुटिल मुस्कान के साथ कहा।
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