गुढ़ी
काव्य साहित्य | कविता गोलेन्द्र पटेल15 Jun 2021 (अंक: 183, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
लौनी गेहूँ की हो या धान की
बोझा बाँधने के लिए – गुढ़ी
बूढ़ी ही पुरवाती है
बहू बाँकी से ऐंठती है पुवाल
और पीड़ा उसकी कलाई!
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