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गुरु महिमा

गुरु महिमा लिखे क्या कोई 
गुरु पर गीत रचे क्या कोई
मौन हो जाते हैं शब्द भी 
छवि गुरु की जो देखे कोई 
 
आसमां मुझको मिल गया है
बाग़ मेरे मन का खिल गया है 
कृपा गुरु की जो मिल गई है
कारवां रोशनी का है 
१.
भटकता रहा था राह में 
था अँधेरों का साया हर तरफ़
रहमत गुरु की जो मिली
रंग ख़ुशियों का छाया हर तरफ़ 
 
कि अब सही राह पर मैं चलूँ 
धर्म के पथ से मैं न टलूँ
गुरु चरणों में पाकर जगह 
ये जीवन साधना बने 
२.
गुरु की शरण जो मिल गई 
मन कँवल सा सलोना हो गया
दीपक जला जो ज्ञान का
उजला हर एक कोना हो गया 
 
गुरु जीवन की चेतना है 
जो बिगड़ा था वो फिर बना है 
शरण में उनकी हम रह सकें
यही गुरुवर से याचना है
 
 आसमां मुझको मिल गया है . . . ।

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