हालत पतली होइगै
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य कविता अमरेश सिंह भदौरिया1 May 2020 (अंक: 155, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
हालत पतली होइगै दद्दू बड़े-बड़े घरकी।
छुटकयेन कै गाड़ी भल कस आगे सरकी।
खेत मा छुट्टा साँड़ ख़ुशहाल
घटतौली खुब करैं दलाल
जमाखोर हैं मालामाल
ग़ायब किहिन थरिया से दाल
गगरिव फोरे कलजुग मा
घीउ न कबौ ढरकी। (1)
देखुवा जो दरवाजे आवैं
बात-बात मा भाव देखावैं
म्वांछा मा खुब ताव लगावैं
लालकिला अपनै बतलावैं
घरमा घुटैं घरैतिनि चिंता मा
चुटकी भरि शक्कर की। (2)
छोटकैयन कै का औक़ात
बड़े-बड़े जब हैं घबरात
तिथि-त्योहार बजारै जात
मंहगाई मा कुछु कहाँ सोहात
थोकभाव मूरी तौलावैं
पूरे हफ्ता भर की। (3)
फुरिनि कहत हौ बचुवा बात
आवै जो कबौ नांत-बांत
तावा भला हुवै कस तात
लड़ै आपस मा चकिया जाँत
चूल्ह न फूँकै मान बड़ाई
पितिया सास कै नईहर की। (4)
पातरि बात बतावै को
पर्दा भला उठावै को
अँधरे का राह देखावै को
आपन दीदा ख़्वावै को
फुरसति मिलै न शाम सबेरे
बातन से इधर उधर की। (5)
सुना है गाँव मा वई बड़े हैं
अबकी बार चुनाव मा खड़े हैं
पिछिलिउ परधानी तो लड़े हैं
न्याय नीति उई सबै पढ़े हैं
किहिन कबौ न जीवन मा बातै
या को लर-जर की। (6)
आवै जब कउनो त्योहार
कोटेदारो करैं बिचार
चीनी उठावै का हैं तईयार
लइ जईंहैं काला बाजार
बिना मिठाई वाली गोझिया
गटई मा कइसे सरकी। (7)
जेठ अषाढ़ मा ज्वातो खूब
यूरिया डीएपी झोंको खूब
म्याण पड़ोसी कै छांटो खूब
अनभल अउरे का ताको खूब
नज़र आवै औक़ात दूरि से
"अमरेश" ऊसर बंजर की। (8)
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