अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

हाँ, मैं अमृता हूँ

हाँ, मैं अमृता हूँ
हाँ, मैंने मोहब्बत की इबादत में बग़ावत की है
हाँ, मैंने ख़ुद की खोज में अपनी ही पहचान छोड़ी है
हाँ, मैं वी आख़दी आँ वारिस शाह नूँ
हाँ मैं, जो तैनूँ फिर मिलाँगी
हाँ मैं, जो तेरी कुछ नहीं लगदी
हाँ, मैंने प्यार में सब कुछ खोया है, ख़ुद को खोए बिना


हाँ, मैं अमृता हूँ
पर ये अमृता इमरोज़ नहीं ढूँढ रही
इस अमृता में ही छुपा एक इमरोज़ भी है
हाँ मैं, एक अमृता, किसी की साथी बनना चाहती हूँ


किसी को एक खुला आसमाँ देना चाहती हूँ
वो जिस से प्रेम करे, 
उसे उस से प्रेम करने की आज़ादी देना चाहती हूँ
जो अपने आँसुओं से अपनी ज़िंदगी सींचे, 
उसके दर्द को पी लेना चाहती हूँ
जो समाज से अपने लिये लड़ने की शक्ति रखे, 
उसकी ताक़त में हिस्सेदार होना चाहती हूँ
जो अपने लिये लड़ने की हिम्मत ना कर पाये, 
उसकी आवाज़ होना चाहती हूँ
जो रंग-धर्म-जाति-पैसे से ऊपर उठे, 
उस समाज की क्रांति होना चाहती हूँ


जो अपने अंदर की कला को पंख दे, 
उसकी उड़ान होना चाहती हूँ
जो ख़ुद जल कर दूसरों की राह रोशन करे, 
उस दीपक की लौ होना चाहती हूँ
जो मोहब्बत की आग में जले, 
उस सिगरेट का धुआँ होना चाहती हूँ
जो इंद्रियों के भोग में रस जाए, 
उस प्रेमी का महकता जिस्म होना चाहती हूँ 
जो कृष्ण को प्रेम करे, 
उस मीरा की भक्ति होना चाहती हूँ


जो आज और अभी में जीए, 
उसका वो जीवंत क्षण होना चाहती हूँ
जो अकारण ही झूमे, 
उसका वो बेपरवाह नाच होना चाहती हूँ
जो दीवाना बन भटके, 
उस बंजारे की मस्ती होना चाहती हूँ
जो बेख़ुदी में ख़ुदा को खोजे, 
उस सूफ़ी की नज़्म होना चाहती हूँ
जो शब्दों में छुपे रहस्य ढूँढे, 
उसकी वो गहरी कविता होना चाहती हूँ 
जो मौन की बेख़्याली में लीन हो जाए, 
उस बुद्ध का ध्यान होना चाहती हूँ

 

हाँ, मैं अमृता हूँ
और मैं तैनूँ फिर मिलाँगी
एक आज़ाद रूह की झलक में 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'जो काल्पनिक कहानी नहीं है' की कथा
|

किंतु यह किसी काल्पनिक कहानी की कथा नहीं…

14 नवंबर बाल दिवस 
|

14 नवंबर आज के दिन। बाल दिवस की स्नेहिल…

16 का अंक
|

16 संस्कार बन्द हो कर रह गये वेद-पुराणों…

16 शृंगार
|

हम मित्रों ने मुफ़्त का ब्यूटी-पार्लर खोलने…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं