हाँ में हाँ कहने की आदत अब नहीं
शायरी | ग़ज़ल बलजीत सिंह 'बेनाम'1 Sep 2019
हाँ में हाँ कहने की आदत अब नहीं
मुझ पे दुनिया की इनायत अब नहीं
उम्र के इस दौर को ताक़ीद है
प्यार करने की इजाज़त अब नहीं
भर गया है जी मेरा भी आजकल
उसको भी पहले सी निस्बत अब नहीं
क्या ज़रूरी ग़ैर की हों साज़िशें
घर में भी महफूज़ इज़्ज़त अब नहीं
वक़्त था कल तक शराफ़त का मगर
इस मुसीबत की ज़रूरत अब नहीं
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