हार नहीं माननी है
काव्य साहित्य | कविता मनोहर कुमार सिंह1 Aug 2020 (अंक: 161, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
देखा है मैंने किरणों को
आईने से टकराकर
अपनी राह बदलते
चलना नहीं छोड़तीं हैं
हार नहीं मानतीं हैं
देखा है मैंने इंसानों को
ठोकरें खा कर गिरते
हिम्मत हारते हार मानते
चलना तो दूर की बात
उठना भी मुश्किल होता है
जब आईने से टकराकर,
किरणें चलना नहीं छोड़तीं।
तो फिर हम इंसान होकर क्यों,
ठोकर खा कर हार मान लेते हैं?
क्यों हम सँभलना छोड़ देते हैं?
हम भी किरणों से सीख लेते हैं
कैसा भी हो राह हमें चलना है
परिस्थितियों से नहीं डरना है
आए कैसा भी वक़्त ज़िंदगी में
हमें डट कर सामना करना हैं।
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