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हम ऐसे देश के वासी हैं...

हम ऐसे देश के वासी हैं,
जहाँ "पे" तो अच्छी ख़ासी है,
मगर...
मगर किश्तों और "बिल्स" भरने के बाद,
रह जाती ज़रा सी है!

 

"लंच-बॉक्स" में नरम-नरम पराठों की बजाए,
मिलतें हैं रूखे-सूखे "सैंडविच",
और शाम को घर लौटने पर
मिलती रोटी बासी है!

 

पानी, बिजली और गैस की कमी नहीं यहाँ,
मगर...
मगर अपनों को पीछे छोड़ आयें हैं,
इस बात की उदासी है!

 

रात दिन चहल-पहल है बाहर,
आज़ादी है पीने-पीलाने की,
मगर...
मगर घर के अन्दर सन्नाटा है,
और रूह प्यासी की प्यासी है!

 

वहाँ दो सौ साल ग़ुलामी सही इनकी हमने,
मगर...
मगर यहाँ "ब्राउन" चमड़ी "व्हाईट" चमड़ी की
अभी भी दासी है!

 

हम ऐसे देश के वासी हैं,
जहाँ "पे" तो अच्छी ख़ासी है...

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