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हमारा देश कविता में सांप्रदायिक भाव

प्रवासी भारतीय साहित्यकार प्रो. हरिशंकर आदेश जी का विश्वस्तर पर अपना एक निश्चित स्थान है। वे लगभग पचास सालों से विदेश में स्थित हैं। वे एक ख्यातिप्राप्त साहित्यकार हैं। आदेश जी ने 4 महाकाव्य, 8 सप्तशती संग्रह, 8 अनूदित रचनाएँ, 66 संगीतशास्त्र, साहित्य कृतियाँ 10 बाल साहित्य रचनाएँ, 6 उर्दू कृतियाँ, 8 अंग्रेज़ी नाटक, नीतिपरक रचनाएँ, 6 रचनाओं का संपादन, 2 धर्मशिक्षा विषयक कृतियाँ, 3 पाठ्यपुस्तकें, 4 पत्र साहित्य कृतियाँ आदि साहित्यिक रचनाओं की निर्मिति की है।

प्रो. आदेश जी के साहित्य में मानवीय संवेदना, नीतिमूल्य, भारतीयता दर्शन संगीत आदि श्रेष्ठ तत्वों का दर्शन होता है। भारत देश, संस्कृति, हिन्दी भाषा के प्रति होने वाले प्रेम के कारण उन्होंने त्रिनिदाद में हिन्दी संस्थान की स्थापना की है। वहाँ पर प्रो. आदेश जी भारतीय संगीत, धर्म, संस्कृति, भाषा आदि की शिक्षा देते हैं।

प्रो. आदेश जी "हमारा देश" कविता में भारत के प्रति होनेवाला आदर अभिव्यक्त करते हैं। उन्होंने देश की संस्कृति में होनेवाली पावनता, भक्ति की भावना, देश का सौदर्य, देश में होनेवाली एकता, सर्वधर्मसमभाव की भावना आदि बातों का चित्रण कविता में किया है।

प्रो. आदेश जी "हमारा देश" कविता में प्रारम्भ में कवि अपने देश को प्राणों से भी प्रिय मानने की भावना अभिव्यक्त करते हैं। कवि विदेश में स्थित होकर भी अपनी जन्मभूमि के प्रति मन में आदर की भावना है।

"हमारा देश है यह हमारा देश है।
प्राणों से भी बढ़कर प्यारा है यह।"

इन पंक्तियों में कवि देश के लिए अपना सब कुछ त्याग देने के लिए तैयार है। भारतभूमि कवि की केवल जन्मभूमि है फिर भी कवि देश के लिए प्राण देने के लिए तैयार है।

भारत शांति प्रिय तथा विश्व को शांति का संदेश देनेवाला देश है। परंतु भारत के सीमा पर होनेवाले देश ही भारत पर आक्रमण करते हैं। जब बार-बार किए जानेवाले इस आक्रमण को मुँहतोड़ जबाब हमारे जवान देते हैं। प्रो. आदेश जी को देश के जवानों के शक्ति के प्रति इतना विश्वास है कि वे भारतीय जवानों को मगर कहते हैं और शत्रु को मीन की उपमा देते हैं।

"सीमा की छाती को छेदा आज बेहया चीन ने
मानो छेड़ दिया मकरों को एक मूर्ख मीन ने
दृष्ट दानवों हित अंगारा देश है यह"

कवि के मन में अपने देश के प्रति प्रेम भरा हुआ है। कवि भारत को मकर की उपमा देते हैं मतलब भारत मकर जैसा बलवान है और उसके शत्रुओं को मीन की उपमा दी है। भारत के शत्रु मीन जैसे छोटे हैं और ऐसे शत्रुओं ने बलवान देश को छेड़ने का प्रयास किया है। ऐसे शत्रुओं के लिए, दानवों के लिए भारतीय जवान अंगार बन जाते हैं। कवि यही कहना चाहते हैं कि भारत का कोई भी शत्रु हो लेकिन उसके लिए भारत अंगार बन जाता है।

कवि को अपनी मातृभूमि माँ से भी प्रिय लगती है। वे विदेश में पचास से अधिक साल रहकर भी विदेशी संस्कृति को अपनाया नहीं है। उन्हें अपनी भारतीय संस्कृति ही श्रेष्ठ लगती है।

"जिसके कण-कण में पावनता, अणु – अणु प्रेरित भक्ति
जिसके क्षण – क्षण में अनुमयता तृण – तृण ही शक्ति है।
सारे देशों से ही न्यारा देश है यह।

कवि कहते हैं कि भारतभूमि के कण-कण में पवित्रता भरी हुई हैं। इसके अणु-अणु में मतलब प्रत्येक व्यक्ति के मन में भक्तिभावना भरी हुई है। भारतीय संस्कृति ही विनम्रता की सीख देती है। भारत के प्रत्येक घटक में शक्ति भरी हुई है। इन सभी कारणों से कवि को भारत देश विश्व में न्यारा लगता है।

भारत देश विविधता में एकता रखनेवाला है, सर्वधर्मसमभाव की भावना देश की जनता में भरी हुई है। भारत में अनेक जाँति, धर्म, वंश के लोग रह्ते हैं लेकिन उनमें किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं है इसके बारे में कवि कहते हैं कि

"हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई सब भाई भाई है
चलो बुलाती सबकी ही प्यारी भारत माई है
आज दिखा दो प्रलयकर का देश है"

भारत में हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई आदि सभी भाई - भाई बनकर रहते हैं। भारत देश सब जाति - धर्म के लोगों की माता है लेकिन इस देश के लोगों में भेदभाव की भावना बढाने का प्रयास करनेवालों के विरुद्ध भारतीय जनता प्रलय मचा देगी-

"आहें निकल रही है ठडी, दृढ़ तपस्वी कैलाश की
आज जल रही है होली, सीमा पर बस विश्वास की
मित्र – धातियों हेतु दुधारा देश है"

भारत को प्रकृति ने ही रक्षा के हेतु चारों ओर से बंदिस्त बना दिया है। तीनों ओर से सागर है और एक ओर से कैलाश पर्वत खडा है। वह कैलाश पर्वत हजारों सालों से देश की रक्षा कर रहा है। अनेक शत्रुओं को आज तक पीछे हटा दिया है। लेकिन दृष्ट शत्रु बार-बार कैलाश पर आक्रमण करने लगे हैं। उनके बम हल्ले से कैलाश पर्वत हतबल होने लगा है। परंतु भारतीय जवान उन शत्रुओं को प्रतिउत्तर देते हैं जिससे सीमा पर अनेक जवानों को अपनी जान न्योछावर करनी पड़ रही है। फिर भी जवान पीछे नहीं हटेगें ऐसा पूरा विश्वास कवि को जवानों पर है विश्व को शांति का संदेश देनेवाले भारत पर ही आक्रमण किए जाने लगे हैं। मतलब भारत देश की संस्कृति, समृद्धि दुसरे देशों को देखी नहीं जाती अत: आक्रमण करते हैं।

प्रो. आदेश जी की कविता से यही स्पष्ट होता है कि विश्व में भारत की संस्कृति सर्वश्रेष्ठ है और ऐसे देश में जन्म लेना अत्यंत भाग्य का है। कवि आदेश जी लगभग पचास साल से विदेश में रहे हैं। परंतु भारत माता को भुले नहीं है इतना ही नहीं तो वे भारतीय संस्कृति, साहित्य, हिंदी भाषा का प्रचार प्रसार करने का काम भी कर रहे हैं।

सुश्री. वंदना प्रकाश पाटील
अध्यक्ष, हिंदी विभाग,
श्रीपतराव चौगुले आर्ट्स अंड कॉमर्स कॉलेज
मालवाडी – कोतोली

1. प्रो. हरिशंकर आदेश – "लहू और सिंदूर" जीवन ज्योति प्रकाशन, त्रिनिदाद : प्रकाशन -2001
2. प्रो. हरिशंकर आदेश – समग्र साहित्य सूची तथा साहित्य

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