हँस के बोला करो बुलाया करो
शायरी | ग़ज़ल अब्दुल हमीद ‘अदम‘28 Apr 2007
हँस के बोला करो बुलाया करो
आप का घर है आया जाया करो
मुस्कराहट है हुस्न का ज़ेवर
रूप बढ़ाता है मुस्कराया करो
हद से बढ़ कर हसीं लगते हो
झूठी कसमें ज़रूर खाया करो
हुक्म करना भी एक सख़ावत है
हम को ख़िदमत कोई बताया करो
सख़ावत=स्वतन्त्रता
बात करना भी बादशाहत है
बात करना न भूल जाया करो
ताकि दुनिया की दिलकशी न घटे
नित नये पैहरन में आया करो
पैहरन=पहनावा
कितने सादा मिज़ाज़ हो तुम ‘अदम‘
उस गली में बहुत न जाया करो
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