हर दम मेरे पास रहा है
शायरी | ग़ज़ल सजीवन मयंक29 Aug 2007
हर दम मेरे पास रहा है।
वो जो मेरा खास रहा है॥
बाहर से हँस लेता है दिल।
भीतर बहुत उदास रहा है॥
महानगर में आम आदमी।
चलती फिरती लाश रहा है॥
दिखते हैं जो आज खंडहर।
उनका भी इतिहास रहा है॥
अपनी हम क्या कहें दोस्तों।
जीवनभर वनवास रहा है॥
क्या होता है दर्द पराया।
हरदम ये एहसास रहा है॥
जाने वाला चला गया है।
अब क्या खाक तलाश रहा है॥
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गीतिका
कविता
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