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हरि से बड़ा हरि का नाम!!

हमारे मित्र अब विधायक हो गये थे। हमेशा पूछते- कोई काम हो तो बताना । हम शरीफ आदमी ठहरे। कुछ ऐसा काम ही नहीं सोच पाये, जो कि उनसे कराया जाये। एक बार एकाएक बम्बई जाना था। एक दिन का समय था। शादी ब्याह का समय चल रहा था। ट्रेन में भारी भीड़-भाड़। आरक्षण मिल पाना संभव नहीं था। किसी ने कहा विधायक जी से चिट्ठी लिखवाकर डी.आर.एम. कोटा में आरक्षण मिल जायेगा। हम भागे विधायक जी के घर की तरफ़। रास्ते में ही वो जीप से आते दिख गये। हमें देखकर रुक गये। हमने अपनी परेशानी बतायी। उनके पास लेटर पैड तो गाड़ी में था नहीं। रेल्वे का दफ़्तर पास ही था। हमने कहा, भाई, चल कर बोल दो। वो तैयार हो गये। हम उन्हीं की जीप में बैठ कर रेल्वे के दफ्तर पहुँच गये। सुबह का समय था। डी आर एम साहब तो आये नहीं थे। बड़े बाबू, जो कोटा ईश्यू करते थे, बैठे थे। हम लोग उन्हीं के पास जाकर बैठ गये। हम विधायक जी का परिचय दिये और विधायक जी बोले- बड़े बाबू, यह बम्बई जा रहे हैं, इनका डी.आर.एम. कोटा मे आरक्षण दे दिजियेगा। बड़े बाबू बोले- आप विधायक वाले लेटर पैड पर लिखकर आवेदन करवा दें और साथ मे मोहर लगवा दें, मै कर दूँगा। विधायक जी बोले- अरे भाई, मैं खुद साक्षात बोल रहा हूँ और तुम चिट्ठी की बात करते हो। बहुत जद्दोजेहद के बाद भी बात नहीं बनीं। तब हम विधायक जी के साथ उनके घर आये, उनके लेटर पैड पर आवेदन बनाया, उनकी मोहर लगाई, दस्तखत लिये और जाकर जमा कर आये, आरक्षण मिल गया।. . .वाह वाह, हरि से बड़ा हरि का नाम!!! 

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