हौसला
काव्य साहित्य | कविता अनिल मिश्रा ’प्रहरी’1 Jul 2020 (अंक: 159, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
हौसला टूटे न टूटी जो
अगर पतवार है,
कश्तियाँ होतीं उन्हीं की
मौज के उस पार हैं।
जो अगर हिम्मत हृदय में
रोक ले तूफ़ान को,
लड़खड़ाते भी मगर
होती न उनकी हार है।
राह की गर्मी न देती
है तपन, बेचैनियाँ,
मंज़िलों की चाह देती
थपकियाँ सौ - बार है।
हो विकट चाहे सफ़र
या शूल दे धरती- गगन,
हौसला ही ज़िन्दगी में
जीत का आधार है।
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