हज़ार क़िस्से सुना रहे हो
शायरी | ग़ज़ल मानोशी चैटर्जी3 May 2012
हज़ार क़िस्से सुना रहे हो
कहो भी अब जो छुपा रहे हो
ये आज किस से मिल आये हो तुम
जो नाज़ मेरे उठा रहे हो
जो दिल ने चाहा वो कब हुआ है
फ़ज़ूल सपने सजा रहे हो
सयाना अब हो गया है बेटा
उम्मीद किस से लगा रहे हो
तुम्हारे संग जो लिपट के रोया
उसी से अब जी चुरा रहे हो
मेरी लकीरें बदल गई हैं
ये हाथ किस से मिला रहे हो
ज़रूर कुछ ग़म है ‘दोस्त’ तुम को
ख़ुदा के घर से जो आ रहे हो
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