हिंदी बोलो रे
काव्य साहित्य | गीत-नवगीत भावना सक्सैना15 Sep 2021 (अंक: 189, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
हिंद के निवासी हो तो हिंदी बोलो रे
प्रेम की ये भाषा है हिंदी बोलो रे
हिंदी पढ़ो, हिंदी लिखो, हिंदी बोलो रे
अरे भई हिंद के निवासी हो तो हिंदी बोलो रे।
पूरब, पश्चिम, उत्तर दक्षिण, जोड़े सबको जो
सबको जो अपनाती है, वो हिंदी बोलो रे
राजभाषा ये तुम्हारी, मन की भाषा ये
तुमको इससे प्रेम है तो है हिंदी बोलो रे
हिंदी पढ़ो, हिंदी लिखो, हिंदी बोलो रे
अरे भई हिंद के निवासी हो तो हिंदी बोलो रे
दूर-दूर फैली इसकी शाखाएँ अनेक
बोलियाँ असंख्य हैं, पर भाषा है ये एक
घर हो दफ़्तर हो, या हो कोई देश,
डरो नहीं, झुको नहीं, हिंदी बोलो रे।
हिंदी पढ़ो, हिंदी लिखो, हिंदी बोलो रे
अरे भई हिंद के निवासी हो तो हिंदी बोलो रे
भाषा राजकाज की, भाषा ये संचार की
भाषा संविधान की, भाषा ये संस्कार की
गौरव है ये राष्ट्र का, आन-बान देश की,
इसको संग लेके चलो हिंदी बोलो रे।
हिंदी पढ़ो, हिंदी लिखो, हिंदी बोलो रे
अरे भई हिंद के निवासी हो तो हिंदी बोलो रे।
ये सहज, ये सरल, ये सुबोध है,
इसमें नेह-प्रेम है, अपनत्व बोध है
केरल जाओ, असम जाओ, तमिल जाओ रे
इसकी सखियों को मिलाओ, फिर हिंदी बोलो रे
हिंदी पढ़ो, हिंदी लिखो, हिंदी बोलो रे
अरे भई हिंद के निवासी हो तो हिंदी बोलो रे।
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