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हिंदी में शब्द व्याकरण (Word Grammar) के लिए कृत्रिम बुद्धि (AI) का उपयोग

विश्व भर के भाषावैज्ञानिक और कंप्यूटर विशेषज्ञ आज यह स्वीकार करने लगे हैं कि शब्द एक बीज के समान है, जिसमें संपूर्ण वृक्ष के रूप में वाक्य को पुष्पित, पल्लवित और विकसित करने की क्षमता निहित है। शब्द व्याकरण (Word Grammar)  की आरंभिक परिकल्पना ब्रिटिश भाषावैज्ञानिक रिचर्ड हडसन ने अस्सी के दशक में की थी। तदनुसार प्रत्येक शब्द विविध प्रकार के अभिलक्षणों (features) का संविन्यास (configuration) है। ये अभिलक्षण प्रकट (overt) और अप्रकट (covert) दोनों ही रूपों में शब्दों में निहित हैं। ये अभिलक्षण दो प्रकार के होते है : सार्वभौमिक (Universal) और भाषाविशिष्ट (language specific)। यदि इन अभिलक्षणों का समुचित विश्लेषण किया जाए तो न केवल शब्दों के विभिन्न अर्थों और संदर्भों को खोजा जा सकता है, बल्कि वाक्य रचना के सूक्ष्म नियमों को भी अनावृत किया जा सकता है, किंतु प्राचीन व्याकरण का आरंभिक स्वरूप मुख्यतः अनुशासनमूलक (Prescriptive) रहा है। अनुशासनमूलक व्याकरण का आग्रह भाषाविशेष की शुद्धता बनाए रखना था। टेरी विनोग्राद (1983) के शब्दों में, “इस प्रकार भाषावैज्ञानिक का कार्य उस दौर में न्यायाधीश या पुलिसमैन का रहा होगा, जिसका दायित्व सामाजिक व्यवहार के रूप में भाषा के सही प्रयोग को अनुशासित रखना था।”

19 वीं सदी में डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत से भाषाविज्ञान का क्षेत्र भी अछूता न रहा और तुलनात्मक भाषाविज्ञान के नाम से एक नया आयाम भाषाविज्ञान के क्षेत्र में जुड़ गया, जिसके अंतर्गत विभिन्न भाषाओं में अंतर्निहित समान और असमान वृत्तियों के आधार पर विश्व की सभी भाषाओं को विभिन्न भाषा-परिवारों में विभाजित कर दिया गया और उनकी प्रवृत्तियों के तुलनात्मक अध्ययन पर बल दिया जाने लगा। कालांतर में तुलनात्मक भाषाविज्ञान (Comparative Linguistics) का स्थान संरचनात्मक भाषाविज्ञान (Structural Linguistics) और उसके बाद प्रजनक रूपांतरण व्याकरण (Generative Transformational Grammar) ने ले लिया। चॉम्स्की (1965) के इसी प्रजनक रूपांतरण व्याकरण (TG Grammar) के आधार पर सर्वभाषा व्याकरण की परिकल्पना की गई, लेकिन उनका प्रयास भाषाविशेष की प्रवृत्तियों का अध्ययन करने के बजाय भाषानिरपेक्ष (language independent) और सार्वभौमिक तत्वों (Universal elements) की खोज तक ही सीमित रहा, लेकिन सर्वभाषा व्याकरण का यह प्रयास विश्व की अनेक भाषाओं के संदर्भ में, विशेषकर भारतीय भाषाओं के संदर्भ में सफल नहीं हो पाया। मैंने सन् 1992 में IIT, कानपुर द्वारा आयोजित CPAL-2 के अवसर पर प्रस्तुत अपने आलेख में हिंदी भाषा के संदर्भ में यही स्पष्ट किया था कि जब तक भाषाविशेष के विशिष्ट पक्षों का सम्यक् अध्ययन नहीं कर लिया जाता तब तक उस भाषा का संश्लेषण, विश्लेषण और संसाधन कंप्यूटर के माध्यम से नहीं हो पाएगा। जैसे हिंदी और अंग्रेज़ी के निम्नलिखित वाक्य देखें:

(1) राम को बुखार है।

(2) राम श्याम से मिलता है।

(3) Ram has a fever.

(4) Ram meets Shyam.

 

वाक्य (1) में ‘को’ का प्रयोग हिंदी की भाषाविशिष्ट प्रवृत्ति है। यह दिलचस्प तथ्य है कि वाक्य (3) के अंग्रेज़ी वाक्य में ‘को’ परसर्ग (postposition) के समकक्ष कोई पूर्वसर्ग (Preposition) नहीं है, लेकिन सभी भारतीय भाषाओं में ‘को’ के समकक्ष परसर्ग का नियमित प्रयोग मिलता है:

(5) रामला ताप आहे. (मराठी)

(6)  रामक्कु ज्वरम् (तमिल) 

(7)  रामन्नु पनियानु  (मलयालम)

(8)  रामनिगे ज्वर दिगे  (कन्नड़)

(9) रामेताप आछे (बंगला) 

 

यह प्रवृत्ति दक्षिण पूर्वेशिया की अन्य भाषाओं में भी मिलती है। इन्हीं समान भाषिक प्रवृत्तियों के आधार पर ही यह निष्कर्ष निकाला गया कि सिर्फ़ भारत ही नहीं, बल्कि संपूर्ण दक्षिण पूर्वेशिया, एकभाषिक क्षेत्र (Linguistic Zone) है।

इसी प्रकार वाक्य (2) और (4) में श्याम के रूप में सहकर्ता की उपस्थिति ‘मिलना’ और ‘meet’ क्रिया की सार्वभौमिक प्रवृत्ति है, लेकिन वाक्य (2) में ‘से’ का प्रयोग हिंदी की भाषाविशिष्ट प्रवृत्ति है। यही कारण है कि वाक्य (4) में ‘से’ के समकक्ष किसी परप्रत्यय का प्रयोग नहीं है। इस प्रकार की भाषिक प्रवृत्तियों और अभिलक्षणों के विश्लेषण का कार्य प्राकृतिक भाषा संसाधन या Natural Language Processing (NLP) या कृत्रिम बुद्धि (AI) के अंतर्गत किया जाता है।

NLP का मुख्य आधार स्तंभ है, शब्दवृत्त (Lexicon)। NLP के अंतर्गत शब्दवृत्त के निर्माण की प्रक्रिया में मुख्यतः तीन उपागम (approaches) अपनाए जाते हैं : संरचनात्मक, लक्षणपरक और संबंधपरक। इन्हीं उपागमों के अंतर्गत अर्थपरक क्षेत्रों (Semantic Fields) के आधार पर शब्दों का वर्गीकरण किया जाता है। सामान्य कोश में जहाँ शब्दों को अकारादि क्रम में रखा जाता है, वहीं संरचनात्मक उपागम के अंतर्गत शब्दों को अर्थपरक कोटियों में विभाजित किया जाता है, जैसे थिसॉरस आदि। लक्षणपरक उपागम के अंतर्गत पक्ष, वचन, काल, लिंग आदि व्याकरणिक सूचनाएँ दी जाती हैं। ये सूचनाएँ प्रकट रहती हैं। जैसे– ‘गया’ में ‘या’ प्रत्यय भूतकाल, एकवचन और पुल्लिंग की सूचना देता है। हिंदी में संज्ञापद में बहुवचन के तिर्यक् रूप में परसर्ग की उपस्थिति अनिवार्य है और यह सूचना हमें शब्दवृत्त में की गई उसकी प्रविष्टि से अनायास ही मिल जाती है। उदाहरण के लिए हिंदी के किसी भी वाक्य में ‘लड़कों’ और ‘लड़कियों’ का प्रयोग परसर्ग (के, में, से आदि) के बिना नहीं किया जा सकता है। ‘लड़कों / लड़कियों को बुलाओ’। इतना ही नहीं, ’ओं’ के प्रयोग से भी इनकी तिर्यक् प्रवृत्ति का बोध हो जाता है। यदि यहाँ ’ओ’ का प्रयोग होता तो यह संबोधनवाचक बहुवचन होता और उसके साथ किसी भी परसर्ग (के, में से आदि) के प्रयोग की अनुमति नहीं है. जैसे– देवियो और सज्जनो..

अर्थपरक और वाक्यपरक लक्षण अप्रकट होते हैं अर्थात् ये लक्षण शब्दों में ही अंतर्निहित होते हैं। जैसे “बालक” शब्द चेतन, प्राणिवाचक, मानव और मूर्त संज्ञापद है। ये लक्षण “बालक” शब्द के अर्थपरक लक्षण हैं।

संबंधपरक उपागम दो शब्दों के बीच के संबंधों को उजागर करते हैं। यदि माँ-बाप और बच्चे के संबंध को लें तो ये इस प्रकार हो सकते हैं।

जैसे–

पिल्ला > बच्चा >  कुत्ता

बछड़ा > बच्चा >  गाय

 

इसी प्रकार अंग-अंगी संबंधों को भी रखा जा सकता है :

पैर <>अंग-अंगी संबंध <>शरीर चोंच <>अंग-अंगी संबंध <>चिड़िया 

पर्यायवाची शब्द भी (जैसे– पवन, समीर, वायु, हवा) भी इसी के अंतर्गत आते हैं। शब्दवृत्त (Lexicon) के अंतर्गत इस प्रकार के अनेक संबंधों को एक जालक्रम (Network) के रूप में इस प्रकार रखा जा सकता है :

ठंडा <>पर्याय<> शीतल 

ठंडा<> विलोम<> गरम 

चीता <>वर्ग स्तनपायी<> पशु 
                                              
खाना> प्रेरणा > खिलाना

बछड़ा >शिशु >गाय    
                                                 
हाथ >अंग> शरीर
        
सोमवार> अनुक्रम> मंगलवार

ये सभी अभिलक्षण सर्वभाषा व्याकरण के अंतर्गत आते हैं।

कृत्रिम बुद्धि के अंतर्गत वाक्यपरक, अर्थगत और संदर्भगत तत्वों को समन्वित रूप में देखने का प्रयास किया जाता है। प्राकृतिक भाषा को समझने में विश्वज्ञान और व्यवहार क्षेत्र के ज्ञान की भूमिका को पर्याप्त महत्व दिया गया है। कंप्यूटर के लिए प्राकृतिक भाषा के पाठ को समझना इतना सरल नहीं है। इसके अनेक कारण हैं। सर्वप्रथम, इसके लिए विपुल मात्रा में वास्तविक विश्वज्ञान के निरूपण और प्रकलन (manipulation) की आवश्यकता होती है। वस्तुतः ज्ञान संरचना (Knowledge Structure) एक ऐसी डेटा संरचना (Data Structure) है, जिसमें अनेक जटिल वस्तुओं को सामान्य वस्तुओं में विभाजित किया जा सकता है।

  • ISA संबंध - अभिक्रमिक वर्गिकी (Hierarchical Taxonomy) के अंतर्गत वस्तुओं के बीच के आपसी संबंध, जैसे–

कुत्ता एक पालतू जानवर है।
पालतू जानवर जानवर होता है।
जानवर सजीव प्राणी होता है।

  • ISPART संबंध- कतिपय विशिष्ट लक्षणों के समुच्चय से निर्मित वस्तुओं के परस्पर संबंध। जैसे–

हाथ शरीर का अंग है।
अंगूठा हाथ का भाग है।
अंगूठे का नाखून अंगूठे का भाग है।

ISA और ISPART दोनों ही संबंध अपने-अपने व्यवहार क्षेत्र के आंशिक अनुक्रम हैं। एक ही वस्तु ISA और ISPART दोनों संबंधों के रूप में वर्णित की जा सकती है, बल्कि उसके अनेकानेक और भी संबंध भी खोजे जा सकते हैं।

इसप्रकार सर्वभाषा व्याकरण में सभी भाषाओं के सार्वभौमिक तत्वों की खोज के लिए कृत्रिम बुद्धि (AI) की विभिन्न तकनीकों का व्यापक प्रयोग किया गया, लेकिन इस प्रक्रिया में भाषाविशिष्ट अभिलक्षणों की उपेक्षा होती रही। हिंदी के परंपरागत व्याकरणों में भी हिंदी भाषा की बहुत कम भाषाविशिष्ट संरचनाओं की विवेचना की गई है। इस कमी को प्रो. सूरजभान सिंह द्वारा लिखित “हिंदी का वाक्यात्मक व्याकरण” में पूरा करने का प्रयास किया गया। यद्यपि प्रो. सिंह ने हिंदी भाषा के लिए कुल 14 वाक्य-साँचों और 45 उपवाक्य-साँचों की परिकल्पना की है, किंतु मैं इस लेख में केवल तीन वाक्य-साँचों पर ही चर्चा करूँगा, जिन पर अभी भी अधिकांश हिंदी शिक्षकों का ध्यान नहीं गया है।

 

1. को-वाक्य-साँचा

आम तौर पर आज भी हिंदी के शिक्षक ‘को’ की परिकल्पना केवल कर्म के साथ जोड़कर ही करते हैं। जैसे– राम श्याम को पीटता है। लेकिन कर्ता के साथ व्युत्पन्न ‘को’ वाक्यों पर हमारा ध्यान नहीं जाता, जबकि ‘को’ वाक्य-साँचे से व्युत्पन्न वाक्यों का हिंदी में व्यापक प्रयोग किया जाता है। जैसे–

  • राम को बुखार है। 

  • मुझे (मैं + को) बहुत काम है।

  • राम को फ़ुटबॉल का शौक है।

  • राम को लड़कियों से नफ़रत है आदि..

ऐसे सभी वाक्यों को, जिनमें पूरक अथवा कोशीय क्रिया की आकांक्षा के कारण (लौकिक) कर्ता के साथ ‘को’ परसर्ग का प्रयोग अनिवार्य हो, ‘को’ वाक्य कहा जाता है। 

प्रो.सिंह ने कुछ विशिष्ट आर्थी लक्षणों (specific semantic features) के आधार पर को-भावों का एक स्थूल वर्गीकरण इस प्रकार किया है :

 

1. शारीरिक अनुभूति (बुखार, प्यास, नींद, पसीना, हँसी, छींक आदि) 

1.1 शीला को प्यास लगी।
1.2 राम को नींद /हँसी /छींक /आई। 

2. बौद्धिक अनुभूति (ज्ञान / बोध) (आना, मालूम होना, याद आना) 

2.1 सुधीर को हिंदी आती है।
2.2 शीला को यह मालूम है।
2.3 विजय को अक्सर अपने गाँव की याद आती है।

3. मनोभाव (दुःख, गुस्सा, आशा, नफ़रत आदि)

3.1 राम को यह खबर सुनकर बहुत दुःख हुआ।
3.2 पार्वती को अपनी सहेली पर बहुत गुस्सा आया। 
3.3 पिता को बेटे से यही आशा थी।  

4. पसंद /आदत (पसंद, शौक, दिलचस्पी, आदत आदि)

4.1  राम को फ़ुटबॉल का शौक है।          
4.2 सुधीर को खीर बहुत पसंद है।  

5. अमूर्त मानवीय व्यापार 

5.1 ज़रूरत-वर्ग (ज़रूरत, आवश्यकता, इंतज़ार, खोज, चाहिए, तलाश, प्रतीक्षा आदि)।

5.1.1 राम को नौकर की ज़रूरत है।  
5.1.2 शीला को कार चाहिए।

5.2.उपलब्ध-वर्ग (उपलब्ध होना, नसीब होना, प्राप्त होना, मिलना, सुलभ होना) 

 5.2.1 राम को सब सुविधाएँ उपलब्ध / प्राप्त /सुलभ हैं।)
 5.2.2 शीला को सौ रुपए मिले।
                                  
5.3 लाभ / हानि–वर्ग)  (अभाव, कमी, क्षति, नुक्सान, बचत, हानि आदि) 
           
 5.3.1  सेठ जी को दस हज़ार रुपए का नुक्सान हुआ।                       
 5.3.2 राम को इस साल अच्छी बचत हुई।

5.4 काम-वर्ग  (अवकाश, काम, खतरा, जल्दी, मतलब, विलंब, फुर्सत आदि)

5.4.1 मुझे (मैं+को) आज बहुत काम है।
5.4.2 पिता जी को जल्दी है।
5.4.3 तुम्हें (तुम+को)क्या मतलब?          
5.4.4 मुझे (मैं+को) फुर्सत नहीं है।
                               
5.5 स्वीकार्य-वर्ग (मान्य, अमान्य, असह्य, स्वीकार्य आदि)

5.5.1 मुझे (मैं+को) तुम्हारी शर्तें मान्य नहीं हैं।                               
5.5.2 तुम्हारी बातें मुझे  (मैं+को)असह्य लगती हैं।

6. बधाई-वर्ग (अधिकार, नमस्कार, प्रणाम, बधाई, शुक्रिया, छूट आदि) 

6.1 जनता को बोलने का अधिकार है।
6.2 आपको बधाई हो।
6.3 पुलिस को गोली चलाने का आदेश है। 

इससे यह स्पष्ट है कि हिंदी में ‘को-पूरक’ और ‘को-क्रिया’ के रूप में ‘को-भाव’ के प्रयोग की नियमित प्रवृत्ति है और यह हिंदी की भाषाविशिष्ट प्रवृत्ति है। 

2. सहपात्रीय पूरकप्रधान ‘से’ परसर्ग से निर्मित अकर्मक क्रियाप्रधान वाक्य-साँचा

सर्वभाषा व्याकरण के अनुसार कुछ अकर्मक क्रियाएँ ऐसी हैं जो अपने सहज अर्थों में कर्ता के साथ-साथ सहपात्र की आकांक्षा भी करती हैं, जैसे मिलना, लड़ना, झगड़ना, चिपटना, टकराना, डरना, कतराना, चिढ़ना आदि। इन क्रियाओं में सहपात्र के साथ कर्ता का संबंध साहचर्य का भी हो सकता है और पार्थक्य का भी. ’परंपरागत हिंदी व्याकरण में और सर्वभाषा व्याकरण में भी करण (Instrumental) के रूप में निम्नलिखित वाक्यों में ‘से / by/with  या अपादान ( Ablative) ‘से / from’ के प्रयोग की सार्वभौमिक प्रवृत्ति (Universal tendency) मिलती है। जैसे– 

“पेड़ से पत्ते गिरते हैं”। (The leaves fall from the tree)
“हिमालय से गंगा निकलती है”। (Ganga flows from the Himalaya).

इसी प्रकार करण / Intrumental के रूप में भी “से” का प्रयोग सार्वभौमिक प्रवृत्ति है। जैसे– 

डाकू ने यात्री को तलवार से मार दिया / The decoit killed the passenger with a sword.

किंतु हिंदी की एक भाषाविशिष्ट प्रवृत्ति यह भी है कि कुछ अकर्मक क्रियाओं के साथ ‘से’ का प्रयोग क्रिया की आकांक्षा के अनुरूप उनमें अंतर्निहित होता है।

 

जैसे निम्नलिखित वाक्यों को देखें:  

  •  ‘राम श्याम से मिलता है।’ 

  • ‘गोपाल राधा से लड़ता है।’

  • ‘कार स्कूटर से टकरा गई।’

  • ‘बच्चा माँ से लिपट / चिपट गया।’

  • ‘चोर पुलिस से डरता है।'

  • ’शीला अपने पति से रूठ गई।’   

इन सभी क्रियाओं में ‘से’ का प्रयोग अंतर्निहित है, जबकि यहाँ न तो अपादान का प्रयोग है और न ही करण का। यह हिंदी की भाषाविशिष्ट और नियमित प्रवृत्ति है, किंतु हिंदी के परंपरागत व्याकरण की सहायता से आज भी छात्रों को कर्म के साथ ‘को’ और अपादान / करण के विभक्ति-चिह्न या परसर्ग के रूप में ‘से’ का प्रयोग ही पढ़ाया जाता है। प्रो.सिंह द्वारा वर्णित इस प्रकार के सूक्ष्म और अंतर्निहित भाषाविशिष्ट नियमों को प्राकृतिक भाषा संसाधन (NLP) के अंतर्गत प्रो.अरविंद जोशी द्वारा विकसित टैग (Tree-Adjoing Grammar) नामक कलन-विधि (algorithm) की सहायता से वर्ष 1996 में अमरीका के पेन्सिल्वेनिया विश्वविद्यालय में एक ऐसा पदनिरूपक (Parser) विकसित करने का प्रयास किया गया था, जिसकी सहायता से न केवल असंगत हिंदी वाक्यों को प्रजनित होने से रोका जा सकता है, बल्कि एक ऐसा शब्दवृत्त भी तैयार किया जा सकता है, जिसमें इन सभी लक्षणों का समावेश हो। यद्यपि उक्त पार्सर का विकास कंप्यूटरसाधित अनुवाद प्रणाली के लिए किया गया था, किंतु इसकी क्षमता को देखते हुए हिंदी सीखने-सिखाने के लिए शब्दवृत्त भी विकसित किया जा सकता है। 

 

1. ‘करना’ या ‘होना’ जैसे क्रियाकरों के संयोग से निर्मित मिश्र क्रियाएँ:

मिश्र क्रियाओं का मूल घटक (क्रियामूल) कई दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। आर्थी दृष्टि से यही क्रियापदबंध के कोशीय अर्थ का वहन करता है और वाक्य के कर्ता तथा कर्म की आर्थी कोटियों का निर्धारण करता है। जैसे ‘मालूम होना’ में ‘मालूम’ की आकांक्षा के अनुसार ही वाक्य में चेतन कर्ता तथा अमूर्त कर्म का प्रयोग होता है और ‘शादी करना’ में ‘शादी’ की आकांक्षा के अनुसार चेतन कर्ता तथा चेतन कर्म का प्रयोग होता है।

  1. रमेश ने सीता का इंतज़ार किया।

  2. लोगों ने आपकी तारीफ़ की।

  3. मैंने बुद्ध की प्रतिमा के दर्शन किये।

हिंदी की कतिपय मिश्र क्रियाओं के उदाहरण:

संज्ञा+ क्रियाकर <+परसर्ग> / Noun+Verbalizer <+Postposition> का / की/ के +

-    का इंतज़ार/ wait (करना/होना) 
-    की सेवा/serve (करना/होना)
-    का प्रयोग/use (करना/होना)
-    की तारीफ़ praise (करना/होना)
-    का स्मरण/ remember (करना/होना)
-    की याद/remember (करना/होना)
-    की मरम्मत/repair  (करना/होना)
-    की मदद /help (करना/होना) 
-    का पालन/ comply with (करना/होना)
-    का इरादा  /intend (करना/होना)
-    का वादा/promise   (करना/होना)
-    का दान donate  (करना/होना)

अंत में निष्कर्ष के रूप में यही कहा जा सकता है कि यदि हिंदी में शब्द-व्याकरण के विकास के लिए प्राकृतिक भाषा संसाधन (NLP) या कृत्रिम बुद्धि (AI) की तकनीक का उपयोग किया जाए तो हिंदी सीखने-सिखाने के लिए एक उपयुक्त शब्द-व्याकरण का विकास किया जा सकता है, जिससे हिंदी शब्दों में निहित सार्वभौमिक और भाषाविशिष्ट प्रवृत्तियों को अनायास ही अनावृत किया जा सकेगा। 

संदर्भ / References: 

1. हिंदी का वाक्यांतरण व्याकरण (1985)
    • प्रो. सूरजभान सिंह
साहित्य सहकार, विश्वास नगर, दिल्ली द्वारा प्रकाशित
<sahkarsahitya@gmail.com>
2. A Syntactic Grammar of Hindi (2012)
    • Prof. Suraj Bhan Singh
Published by Ocean Books Pvt. Ltd.Asaf Ali Road,New Delhi 
<info@oceanbooksin>
3. Natural Language Processing- A Paninian perspective
    • Akshar Bharati, Vineet Chaitanya, Rajeev Sangal
Published by Prentice Hall of India, New Delhi 
    4.  कंप्यूटर के भाषिक अनुप्रयोग (1998)
    • विजय कुमार मल्होत्रा
वाणी प्रकाशन, दरियागंज, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित
    5. An Introduction to Word Grammar (latest edition 2010)
    • Richard Hudson 
Published by Cambridge University Press (UK)
    6.  Poster Paper on ‘Syntactic Lexicons of Hindi verbs’ (1992 )
    • Vijay K Malhotra
Published in Proceedings of the Second Regional Workshop on
Computer Processing of Asian Languages (CPAL-2)
at IIT, Kanpur on March 12-16,1992

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