हो शुभ बहुत ये साल नया
काव्य साहित्य | कविता मानोशी चैटर्जी23 May 2017
हो शुभ बहुत ये साल नया
वो बीत गया जो साल गया
मुंडेर की ओट से हाथ हिलाता
पीछे छूटा जो साल गया
हो शुभ बहुत ये साल नया
दुख का दरिया पार किया और
खुशी के भी दो सीप चुने
दो पल खुशियाँ, ढेरों आँसू
हो कर मालामाल गया
गुज़र गया जो साल गया
कई सपने टूटे शाखों पर
कई रातें बीती आहें भर
माथे की सिलवट, सूजी आँखें
ले कर अपना हाल गया
गुज़र गया जो साल गया
पूरा हो हर स्वप्न सुहाना
सच्चा हो अब ख्वाब पुराना
नये जहाँ में नयी उमंग से
बनेगा अब चौपाल नया
वो बीत गया जो साल गया
हो शुभ बहुत ये साल नया
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