हम कहीं भी रहें माँ की दुआ साथ रहती है
शायरी | ग़ज़ल डॉ. विजय कुमार सुखवानी3 May 2012
हम कहीं भी रहें माँ की दुआ साथ रहती है
माँ कहीं भी रहे हमारी चिंता साथ रहती है
जब एक रोज़ मुकरर्र है मौत का फिर क्यूँ
सारी उम्र दहशत-ए-कज़ा साथ रहती है
धूप छाँव तो ज़िंदगी में आते जाते रहते हैं
आखिरी पल तक बस हवा साथ रहती है
अपने हों या पराये सब यहीं छूट जाते हैं
नेकी इंसां की मगर सदा साथ रहती है
इंसां अमीरी में रहे या रहे मुफ्लसी में
हर हाल में उसकी अना साथ रहती है
घर दफ्तर इज़्ज़त औ’ दौलत के मसअले
हरपल कोई न कोई चिंता साथ रहती है
एक रोज़ साथ छोड़ जायेंगी ये साँसें भी
कोई भी शय कब तक भला साथ रहती है
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- हम कहीं भी रहें माँ की दुआ साथ रहती है
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