हम ने जितना खोया
काव्य साहित्य | कविता सजीवन मयंक30 Apr 2007
हम ने जितना खोया
उतना मिला नहीं।
फिर भी किसी से
हमको कोई गिला नहीं॥
अभी अभी तूफान
यहाँ से गुज़रा है।
लेकिन उससे पत्ता
भी तो हिला नहीं॥
काँटे उग आये
इंसानी पेड़ों पर।
अपनेपन का फूल
एक भी खिला नहीं॥
नक्शे हैं तैयार
सुनहरे दिन वाले।
मगर अभी तक शुरू
कोई सिलसिला नहीं॥
हम उन राहों पर
चलने के आदी हैं।
जिस पर अब तक चला
कोई काफ़िला नहीं॥
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गीतिका
कविता
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