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इन्द्रधनुषी हाइकु की पहली आभा– ‘यादों के पंछी’


समीक्ष्य कृति: यादों के पंछी (हाइकु संग्रह)
लेखक: डॉ. सुरंगमा यादव
प्रकाशक: नमन प्रकाशन, दिल्ली, सन्‌-2018
पृष्ठ: 108  
मूल्य: 250/-Rs.
ISBN NO. 978-818129-815-7

हिंदी हाइकु अपनी विशिष्ट रचना प्रक्रिया के लिए विख्यात हैं इसके 31 वर्ण और तीन पंक्तियों का विन्यास इसे  जटिल बनाता है। हाइकु,जापानी साहित्य से एक आयातित विधा है इसलिए हिंदी में इसकी स्वीकार्यता में विलम्ब हुआ परन्तु शनैः-शनैः इसने अपनी सूक्ष्मता में, वामन रूप दिखाकर पूरी दुनिया को नाप लिया। अब इसकी आग़ोश में सिर्फ़ प्रकृति ही नहीं अपितु जन सरोकार के सभी विषय समाहित हो चुके हैं। अब हाइकु किसी परिचय का मोहताज नहीं है और न ही इसकी लघुता इसका बौनापन रहा बल्कि अब यह अपनी लघुता में अपनी सघन संप्रेषणीयता के लिए जाना जाता है। इन दिनों हिंदी साहित्य में इस विधा को अपनाने की होड़ लगी हुई है; इस कड़ी में अच्छे हाइकु रचे जा रहे हैं जिनका स्वागत किया जाना चाहिए।

डॉ. सुरंगमा यादव ने अपना यह पहला संग्रह–‘यादों के पंछी’अपने माता-पिताजी को सादर समर्पित किया है, इस संग्रह के हाइकु इन खण्डों के अंतर्गत समाहित हैं— सत्य का पथ, यादों के पंछी, प्रकृति सखी, रेत-सा मन,नदी किनारे, मानवी हूँ मैं, इन्द्रधनुष एवं ताँका। इस पहले संग्रह के हाइकु को पढ़ते हुए यह अहसास हुआ कि आपसे भविष्य के लिए और अपेक्षाएँ की जा सकती हैं। आपके हाइकु अपने पाठकों को उस दृश्य तक ले जाकर अपने विचारों से लबरेज़ करती हैं।  

सत्य का पथ में कुल– 88 हाइकु हैं जो तीसरी दुनिया की शक्ति की ओर इंसानों को लुभाते ले जाना चाहते हैं। यह संसार भाग्य का एक खेल मैदान है जहाँ कोई भी अपने कर्म के द्वारा अपनी क़िस्मत चमका सकता है, इसके लिए उसे वैरागी होना पड़ेगा; एक दीपक के उदाहरण से इसे और पुष्ट किया गया है– 

भाग्य का खेला/कुआँ-खाई के बीच/जीवन ठेला।
मन वैरागी/सब जग लगता/अपना जैसा।
संकेत देता/दीपक तले तम/पूर्ण न कोई।
हठीला तम/छिपा दीपक तले/षड्यंत्रकारी।

यादों के पंछी खंड के तहत कुल–23 हाइकु हैं जहाँ मन की बगिया में यादों के पंछी कलरव करते हैं, यहाँ भूली-बिसरी यादों की खट्टी-मीठी यादों के मेले सजते हैं जो मन को महका जाते हैं तो कभी मायूस कर जाते हैं। यही यादें एकाकी मन को बहलाने का भी कार्य करती हैं तब सुधबुध की कहाँ-किसे ख़बर होती है। यादों की अमूल्य निधियों से मन का ख़ज़ाना सदा ही खनकते रहता है।

जोडूँ कड़ियाँ/यादों की तो बनती/लम्बी लड़ियाँ।
तेरे सपने/लेकर सोयी जागी/तेरी लौ लागी।
प्रणय गीत/लिखती रही आँखें/अश्रु लेखनी।
बिचर रही/मानस सागर में/याद हंसिनी।

प्रकृति सखी ने अपने आँचल में– 73 हाइकु सजाए  हैं जो उसकी विविध छटाओं को अभिव्यक्त करने के लिए पर्याप्त हैं। आपने इस खंड में कुछ अनुत्तरित प्रश्न भी खुले छोड़ दिए हैं जैसे-सागर की लहरें तट पर आ आकर जाने क्या खोजती हैं?; यहाँ भोर की मुलायम धूप की चाहत सभी को है, पक्षियों का कलरव इन्हें सूर्य का चारण गान लगता है तो कहीं धुँध से घिरी वसुधा इन्हें तापसी बाला लगती है। आपमें प्रकृति को देखने और उसका मानवीयकरण करने की अद्भुत क्षमता है जो इन हाइकु में बरबस ही झलकता है–

श्वेत कुहासा/धरती लगती है/तापसी बाला।
सूरज राजा/गाते हैं यश गाथा/चारण पक्षी।
निशा सुखाती/नभ में गीले केश/झरती ओस।
ठण्ड के मारे/फूल के कुप्पा पक्षी/गुस्से में बैठे।
वसंत आया/लगी फूलों की हाट/भटका भौंरा।
बदली ओट/हटा के चन्दा देखे/कितनी रात।
छूने को चन्दा/व्याकुल हैं लहरें/पूर्णिमा रात।
कैक्टस पुष्प/कठोर ह्रदय में/प्रेम का वास।
गेहूँ की बाली/कुहरे का पलना/झुलाती हवा।
पुष्प पाँखुरी/सोने पर सुहागा/ओस की बूँद।

पर्यावरण के संरक्षण की हम सबकी ज़िम्मेदारी है लेकिन यदि हम ही इसका बेइंतहा उपभोग करने लगें तो इसका भण्डार समाप्त हो ही जाएगा। इन्हीं ज़्यादतियों के चलते हमें आज इन समस्याओं से दो-चार होना पड़ता है– ग्रीन हाउस प्रभाव, वैश्विक उष्णता, प्रदूषणों के कुप्रभाव एवं जैव विलुप्तता।

आज हो गए/आँगन व गौरैया/दोनों ही गुम।

रेत-सा मन खंड में–75 हाइकु हैं ये मन की चंचलता और व्यथा की गाथा सुना रहे हैं। मन के रिश्ते सिर्फ़ विश्वासों पर ही चलते हैं, मन के घने अँधेरे को तुम्हारे सपने रंगीन बनाते हैं, हृदय वीणा तुम्हारे आने से बज उठती है, पलकें विवश हैं सपनों को ढोने के लिए–

मन हो गया/जहाज का पक्षी सा/तुमसे मिल।
शब्द नहीं तो/कह दो संकेतों से/तुम मेरे हो।
मन के घाव/प्याज की परतों से/छिपाता मन।
स्वाति बूँद-सा/प्रेम बना है मोती/मन सीपी में।
झूल रहा है/आस-निराश बीच/मन हिंडोला।
तन है भीगा/मन है रेगिस्तान/कैसी बरखा?     

नदी किनारे के– 22 हाइकु किसी अतिथि की राह अगोरते बैठे हैं। ये हाइकु पदयात्रियों को राहत देने उनके पसीने को सुखाने की आस में अकेले खड़े हैं। इस खंड के हाइकु प्रकृति के अधिक निकट हैं।  

ठूँठ पे बैठा/एक अकेला पक्षी/उदास शाम।
अद्भुत लोरी/आ जाती चिरनिद्रा/कौन सुनाता?
नदी किनारे/बुढ़ा जर्जर पेड़/खैर मनाता।

मानवी हूँ मैं कहते हुए– 33 हाइकु स्त्री पक्षधारिता के पाले में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में कामयाब हुए हैं। ये आवाज़ है दुनिया के आधी आबादी की जिसने परिवारों की धुरी सँभाली हुई है तथा संस्कृति एवं संस्कारों को आने वाली पीढ़ियों तक ले जाने की ज़िम्मेदारी ख़ामोशी से निभा रही हैं। इन दिनों इनकी दयनीय स्थिति की चर्चा साहित्य में विशेष स्थान बनाए हुए है।

चूड़ी-पायल/ऐसे बजती,जैसे/झाल-मृदंग।
मोल न जाने/परायी बिटिया का/लोग बेगाने।
काँटों के बीच/खिलते गुलाब-सा/नारी जीवन।

इस दुनिया के विविध रंग इन्द्रधनुष खंड के तहत-114 हाइकु लिए यहाँ प्रस्तुत हुए हैं। इस वर्तमानी वक्त  की तमाम विसंगतियों को हाइकु ने अपने दामन में समेट रखा है। अपनी लाशें लिए घुमते हुए लोग अपने मुखौटे की वजह से चिह्ने नहीं जाते और इस तरह धोखे की एक अजीब दुनिया पल रही है। आइए हम भी हाइकु के इस  रंगोत्सव में भीग लें–  

आज भेड़िये/घूमें गली-गली में/जंगल छोड़।
म्यूजियम में/बनावटी पुतले/शहरी लोग।
चूल्हे की आग/करती है शीतल/पेट की आग।
लगी पचाने/निष्ठुर जठराग्नि/भूखी आँतों को। 

डॉ. सुरंगमा यादव को उनके इस हाइकु संग्रह-यादों के पंछी के लिए बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ। हिंदी साहित्य को अब आपसे अधिक अपेक्षा है कि आपका अगला अंक और समृद्ध होगा। निश्चय ही यह संग्रहणीय अंक, हाइकु के नवलेखकों का मार्गदर्शन करेगी और हाइकु की दुनिया में मील का एक पत्थर साबित होगा।

रमेश कुमार सोनी
LIG-24 कबीर नगर फेज-2, रायपुर,छत्तीसगढ़
पिन-492099, Mo. 7049355476/9424220209

 

 

 

 

 



 

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