अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

इंसानियत

शाम के धुँधलके में भी दूर पड़े अख़बार में रखे रोटी के टुकड़े को उस भूखे लड़के ने देख लिया, वो दौड़ कर गया और अख़बार को उठा लिया।

"ये मुझे दे...," उसमें से वो रोटी निकालने लगा ही था कि एक सूटधारी आदमी ने उसे डाँटते हुए अख़बार छीन लिया।

वो आदमी उस पर छपा समाचार पढ़ने लगा, "हाल ही में चंद्रमा पर सबसे पहले पहुँचने वाला पन्ना जिस पर नील आर्मस्ट्रांग के हस्ताक्षर भी हैं, डेढ़ लाख डालर में नीलाम हुआ। इस पन्ने पर लिखा है- "एक शख़्स का छोटा सा कदम, इंसानियत के लिए एक बड़ी छलाँग।"

''बहुत बढ़िया, ये हुई न बात!" कहता हुआ वो आदमी बड़े-बड़े कदम भरता हुआ आगे बढ़ गया, लेकिन रोटी का टुकड़ा अख़बार में से नीचे गिर गया था, जिसे कुत्ता उठा कर ले गया।

उस भूखे लड़के ने पहले कुत्ते के मुँह में रोटी और फिर आसमान से झाँकते चंद्रमा के छोटे से टुकड़े की तरफ़ देखा, उसे चंद्रमा ऐसा लगा जैसे वो उस अमावस्या का इंतज़ार कर रहा है जब धरती के सूखे पड़े दीपकों को भी रोशन होने का मौका मिलेगा।

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

105 नम्बर
|

‘105’! इस कॉलोनी में सब्ज़ी बेचते…

अँगूठे की छाप
|

सुबह छोटी बहन का फ़ोन आया। परेशान थी। घण्टा-भर…

अँधेरा
|

डॉक्टर की पर्ची दुकानदार को थमा कर भी चच्ची…

अंजुम जी
|

अवसाद कब किसे, क्यों, किस वज़ह से अपना शिकार…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

पुस्तक समीक्षा

लघुकथा

कविता

साहित्यिक आलेख

सामाजिक आलेख

सांस्कृतिक कथा

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं