इन्तज़ार
काव्य साहित्य | कविता प्रकाश चण्डालिया19 Nov 2008
बारिश का दौर
मैं भींगता चला जा रहा था
अंग-अंग मेरा
जूझता चला जा रहा था
बारिश भी देखी
मैंने पतझड़ भी देखा
सावन भी देखे
और गरमी में झुलसा
पर रुका इस इन्तज़ार में हूँ कि
कभी तो वसन्त आएगा जीवन में मेरे।
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