ईश्वर की आवाज़
काव्य साहित्य | कविता राजीव डोगरा ’विमल’1 Apr 2020
जो आया मेरे दर पर
बस कुछ न कुछ
माँगने आया।
पर कभी माँगा न मुझे
न माँगा मेरा
प्रेम तत्व मुझसे।
बस हताश रहा
मुक्ति के लिए,
और परेशान रहा
अपनी इच्छाओं के लिए।
बस ढूँढ़ता रहा
लोगों में कमियाँ
न तलाशा कि उनकी
आत्मा में मेरी अभिव्यक्ति।
अपनी घर की
चारदीवारी की तरह
मुझे भी बाँटता रहा,
कभी मंदिर, कभी मस्जिद
कभी गिरजाघर के रूप में।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
"पहर को “पिघलना” नहीं सिखाया तुमने
कविता | पूनम चन्द्रा ’मनु’सदियों से एक करवट ही बैठा है ... बस बर्फ…
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- अकेलापन
- आदत है अब
- आधुनिक मुखौटा
- ईश्वर की आवाज़
- एक पत्र ईश्वर के नाम
- काल
- काश (राजीव डोगरा ’विमल’)
- कुछ तो हो
- कृष्ण अर्जुन
- क्षितिज
- जाने क्यों (राजीव डोगरा ’विमल’)
- दृढ़ता की दौड़
- नासूर
- पिंजरे में बंद मानव
- बदलता हुआ वक़्त
- बदलाव
- बाक़ी है
- महाकाल
- मृत्यु का अघोष
- मृत्यु का अट्टहास
- मैं समय हूँ
- याद रखना
- यादों के संग
- हे! ईश्वर
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं
{{user_name}} {{date_added}}
{{comment}}