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ईश्वर की विडम्बना

"तूने मुझे पुकारा तो मैं तुरन्त दौड़ पड़ा। तेरी चीख इतनी दर्द भरी थी जैसे तुझ पर बड़ी विपत्ति आन पड़ी हो। मैं तेरी इस करुणामय पुकार से दहल गया था। आनन-फानन मैं तेरी तरफ दौड़ पड़ा।

"मेरे सिर का मुकुट गिरकर खाई तरफ लुढ़क गया। वायु को चीरते जैसे ही मैं बढ़ा तो मेरे कीमती आभूषण टूट-टूटकर गिरने लगे। मेरी रत्नजड़ित माला भी टूट गई और सारे रत्न ज़मीन पर बिखर गये।

"जब मैं हाँफता तेरी झोपड़ी के दरवाज़े पर पहुँचा तो देखा कि वह खुला था। भीतर जाकर देखा तो तेरी पत्नी व बच्चे सो रहे थे। मैंने झोपड़ी का हर कोना तलाशा। बाहर आकर देखा। पर तू कहीं नहीं दिखा।

"आस-पड़ोस से पूछा, पर कोई कुछ न बता सका। मैं हताश लौट पड़ा। वापस होते समय मैंने देखा कि तू मेरी माला के बिखरे रत्नों को बटोर रहा था। पास आने पर भी तूने मेरी तरफ नहीं देखा। तू तो अपनी धुन में रत्नों को बटोरता रहा।

"अरे पगले! अगर तेरी चीख सिर्फ इसलिये उठी थी कि तू मेरे कीमती आभूषण चाह रहा था, तो यह तू मुझे शान्ति से भी बता सकता था। मैं ये आभूषण स्वयं उतारकर तुझे दे देता। तब ये टूट हुए न होते और इनके रत्न भी तुझे बटोरने न पड़ते।"

ईश्वर को पास खड़ा देख वह थरथर काँपने लगा। उसके बटोरे हुए रत्न ज़मीन पर गिर पड़े और पहाड़ी मार्ग से लुढ़ककर नीचे खाई में चले गये। जैसे-तैसे ख़ुद को सँभालकर वह बोला, "हे प्रभु! वह एक निर्धन की पुकार थी। मुख से निकल पड़ी। मेरी पत्नी व बच्चे सो नहीं रहे। वे तो भूख से तड़पते मरणासन्न हो गये हैं।

"हे ईश्वर! मुझे पता नहीं था कि तू निर्धनों की इतनी चिन्ता करता है। मुझे यह भी नहीं मालूम था कि तू इतना दयावान है। वरना वह चीख न होती, मात्र एक छोटी-सी विनती होती।" इतना कह वह रोने लगा।

ईश्वर ने देखा कि उनके शरीर पर तब एक भी आभूषण नहीं था। अब भला, वे उस निर्धन को क्या दे पाते।

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