ईश्वर,पत्थर और मनुष्य
काव्य साहित्य | कविता सौरभ मिश्रा1 Mar 2021 (अंक: 176, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
1.
मैंने हमेशा प्रार्थना की
तुम्हारा पत्थर सा हृदय पिघल जाए
ईश्वर भी बेबस है
मनुष्यों के आगे,
तुम नहीं पिघले
आख़िरकार,
ईश्वर ने पिघला दिए
पत्थर।
2.
बालू में चमकता पत्थर
पाते ही
ईंट और गारे में सनी
अपनी माँ को देखा
और भागी
पीपल के पेड़ के पीछे
सूखी पत्तियों को बना आसन
पूरे भाव से कर दी
प्राण प्रतिष्ठा
दोनों हाथों की रेखाओं को
लगाकर समानांतर
बुदबुदाने लगी वह
उसके शब्द इतने धीमे थे
कोई सुन न सका
यहाँ तक ईश्वर भी।
3.
फ़सल लहलहा रही थी
खनक रहे थे दाने
करबद्ध हो
अनंत की और देखते हुए
उसने कहा
तेरी माया है ईश्वर
अगली सुबह
बादलों ने पत्थर बरसाए
रौंदी फ़सल देख
अनंत को ताकते उसने कहा
तेरी माया है ईश्वर
बिना किसी प्रतिक्रिया के
अनंतकाल से
ऐसे ही
संवाद स्थापित करता रहा है
मनुष्य।
4.
मैंने जब भी सोचा
ईश्वर
मेरे सामने रख दिया गया
पत्थर।
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