जब आँख खुली
काव्य साहित्य | कविता सुशांत सुप्रिय2 Jun 2016
कल रात मैंने
एक सपना देखा
मगर वह कोई सपना नहीं था
सपने में मुझे
कुछ जोकर दिखे
लेकिन वे कोई जोकर नहीं थे
वहाँ सर्कस जैसा
माहौल था
किंतु वह कोई सर्कस नहीं था
वहाँ एक अमीर आदमी
लाया गया जो
वास्तव में कोई और ही था
वहाँ झक्क सफ़ेद धोती-कुर्तों
और उजले सफ़ारी-सूटों में
कुछ जादूगर आए
जो असल में जादूगर थे ही नहीं
उन्होंने उस अमीर आदमी को
जोकरों की तालियों के बीच
देखते-ही-देखते
एक बीमार भिखारी बना दिया
लेकिन यह कोई खेल नहीं था
बहुत देर बाद
जब मेरी आँख खुली
तो मैंने पाया
कि वे सफ़ेदपोश
असल में राजनीतिज्ञ थे
और मेरी बगल में
जो बीमार भिखारी
पड़ा कराह रहा था
वह दरअसल मेरा देश था
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