जल जल दीप जलाए सारी रात
काव्य साहित्य | कविता गोवर्धन यादव14 Oct 2014
जल जल दीप जलाये सारी रात
हर गलियाँ सूनी सूनी
हर छोर घटाटोप अँधेरा
भटक न जाये पथ में
आने वाला हमराही मेरा
झुलस- झुलस दीप जलाये सारी रात
घटायें जब घिर-घिर आतीं
मेरा मन है घबराता
हा-दिखता नहीं कोई सहारा
क्षित्तिज मे आँख लगाये
हर क्षण तेरी इन्तज़ारी में
सिसक-सिसक दीप जलाये सारी रात
आशाओं की पी पीकर खाली प्याली
ये जग जीवन रीता है
ये जीवन बोझ कटीला है
राहों के शूल कटीले हैं
तिस पर यह चलता दम भरता है
तडफ़ तड़फ़ दीप जलाये सारी रात
लौ ही दीपक का जीवन
स्नेह में ही स्थिर जीवन
बुझने को होती है रह रह
तिस पर आँधी शोर मचाती
एक दरस को अखियाँ अकुलातीं
जल जल दीप जलाये सारी रात
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