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जन्मभूमि

 पिछले कुछ महीनों से चंपकवन में बहुत अशान्ति फैली हुई थी। इसकी वज़ह यह थी कि कुछ दुष्ट जानवरों ने चंपकवन में घुसपैठ कर ली थी। ये जानवर जंगल की संपति और और छोटे-छोटे जानवरों के लिए एक खतरा बन चुके थे। चंपकवन का राजा शेरसिंह भी बूढ़ा हो चुका था लेकिन वह भी जंगल में फैलती जा रही अराजकता से चिंतित था। वह जब भी अपने मंत्री चमकू भेड़िये से इस बारे में पूछता तो वह तुरंत जवाब देता- "महाराज! राज्य की स्थिति बहुत अच्छी है। आप बेवज़ह परेशान हो रहे हैं। मुझे लगता है कि कोई आपकी छवि ख़राब करना चाहता है। यदि आपको विश्वास न हो तो अन्य कर्मचारियों से पूछ लीजिए।" शेरसिंह को उसकी बातों में सच्चाई नज़र नहीं आती थी लेकिन वह मजबूर था क्योंकि राज्य की सारी व्यवस्था चमकू भेड़िये के हाथों में थी। चमकू भेड़िया अपनी चालाकी से राजा शेरसिंह को अँधेरे में रख रहा था और उसने अपने चमचों को भी चेतावनी दे रखी थी कि राजा शेरसिंह को हमारे काम के बारे में बिल्कुल पता नहीं चलना चाहिए।

एक बार रात के समय चमकू भेड़िया अपने दो चमचों के साथ नदी की ओर जा रहा था, तभी अचानक झाड़ियों में छिपी मिनी लोमड़ी ने उसे देखा और उसका पीछा करने लगी। मिनी लोमड़ी पिछले कई दिनों से अपने मिशन में लगी हुई थी। दरअसल राजा शेरसिंह ने ही उसे चमकू भेड़िये की जासूसी करने को कहा था। उसने देखा कि चमकू नदी किनारे खड़ा हो गया, तभी वहाँ पाँच अजनबी जानवर आये। चमकू भेड़िये और उनके बीच कुछ बातचीत हुई। अब मिनी लोमड़ी को पक्का विश्वास हो गया कि चमकू ही इन घुसपैठिये जानवरों के साथ मिला हुआ है। वह जितनी जल्दी हो सके, यह बात राजा शेरसिंह को बताना चाहती थी। वह चुपचाप वहाँ से निकली और तेज़ी से चलने लगी। तभी उसे दूसरी तरफ से चीकू खरगोश आता दिखाई दिया। उसने कहा- "चीकू भाई, इतना हाँफ क्यों रहो हो?"

चीकू बोला- "क्या बताऊॅं मिनी बहन! उन दुष्टों ने फिर हम पर हमला कर दिया हैं। वे जंगल के छोटे जानवरों को अपना शिकार बना रहे हैं। अब तो मैंने फैसला कर लिया है कि अपने परिवार के साथ आज ही चंपकवन छोड़ दूँगा।"

मिनी लोमड़ी ने कहा- "नहीं चीकू भैया, तुम ऐसा क्यों कहते हो। चंपकवन हमारी जन्मभूमि है। अगर हम ही अपनी जन्मभूमि को संकट में छोड़कर भाग जाएँगे तो हमारी जन्मभूमि की रक्षा कौन करेगा? आज हमारा कर्तव्य है कि अपनी जन्मभूमि की रक्षा के लिए सबको तैयार करें। मुझे यह भी मालूम है कि चमकू भेड़िया और उसके चमचे ही इन घुसपैठियों के साथ मिले हुए हैं। अब देरी मत करो, चलो, पहले राजा शेरसिंह को यह बात बताएँ।"

चीकू बोला- "तुम बिल्कुल ठीक कहती हो, मैं तुम्हारे साथ हूँ।" वे दोनों राजा शेरसिंह के पास गए और चमकू भेड़िये का भेद खोल दिया। यह सुनकर राजा शेरसिंह को बहुत क्रोध आया। उसने सभी जानवरों को इकट्ठा किया। राजा शेरसिंह ने कहा- "आज हमारी जन्मभूमि चंपकवन में घुसपैठिये आतंक मचा रहे हैं और विश्वासघाती चमकू भेड़िया और उसके चमचे उनका साथ दे रहे हैं। हमें उन घुसपैठियों को ऐसा सबक सिखाना होगा कि वे भूलकर भी यहाँ कदम ना रखें।" सभी जानवरों ने राजा शेरसिंह की आज्ञा का पालन किया। वे शत्रुओं पर बुरी तरह टूट पड़े और उन्हें जंगल के बाहर खदेड़ दिया। चमकू भेड़िये और उसके चमचों को भी अपनी करनी का फल मिल गया। राजा शेरसिंह ने मिनी लोमड़ी की खूब प्रशंसा की। चंपकवन में एक बार फिर से शान्ति और खुशहाली वापस लौट आयी।

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