जवानी और बुढ़ापा
काव्य साहित्य | कविता सुनीता बहल15 Apr 2019
जवानी जोश,
ज़िंदादिली का है नाम,
तो बुढ़ापा शांत,
मन का है आराम।
जवानी उम्मीदों भरी,
है एक मस्ताना ख़्वाब,
बुढ़ापे में है सुकून,
एक अनोखा अहसास।
जवानी धूप जीवन की,
है तड़प बहुत कुछ पाने की,
बुढ़ापा साँझ जीवन की,
है चाहत कुछ दे जाने की।
जवानी प्रेम रस और
उन्माद से है भरी,
बुढ़ापा है समर्पण और
रिश्तों की समझ है खरी।
जवानी नासमझ,
हर समय है लालसा,
बुढ़ापा है समझ,
भगवान में बढ़ती आस्था।
जवानी समुंदर की लहरों सी,
रहती सदा गतिमान,
बुढ़ापा एक गहरी झील सा
रहता सदा धैर्यवान।
हर पल का लो आनंद,
जवानी और बुढ़ापा
ज़िंदगी के हैं दौर,
यह तो आएँगे-जाएँगे,
इन पर है किसका ज़ोर।
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