जीवन बसेरा
काव्य साहित्य | कविता दीपक मेनारिया 'दीपू'1 Dec 2019 (अंक: 145, प्रथम, 2019 में प्रकाशित)
क्षण-क्षण आगे बढ़ रहा है,
यह जीवन हमारा।
साँस चलेगी तब तक उजियारा,
फिर छायेगा घना अँधेरा।
राह अंजानी सी हैं,
गंतव्य का पता नहीं हैं।
ना मालूम कब सिमट जाये,
जग से जीवन बसेरा।
सेवा के कुछ काज करके,
दीन-दुःखियों के दुःख हरके।
इस चमन को महका दो,
सेवा सुगन्धि को फैला दो।
पता नहीं कब जाना हो,
"दीपू" फिर से कभी ना आना हो।
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