जीवन कुरुक्षेत्र
काव्य साहित्य | कविता नेहा दुबे6 Feb 2017
खड़े जीवन कुरुक्षेत्र में,
अर्जुन बन बाट जोह रहे सब
अपने सारथी श्री कृष्ण की,
जो कहे गीता ज्ञान फिर से....!!
सोच के भँवर में फँसा
असमंजस के बादलों से घिरा
खड़ा वो बस निहाल है,
देखता चहुँ ओर,
और सोचता दिन रात है
कि, कोई पुकारे पार्थ से
कहे वो बात जो मन को स्वीकार हो...!!
घेरे कई मन के अवसाद
रोकें उठाने से गांडीव
उस वक़्त,
थाम के जीवन डगर को
फिर से दे एक नव दृष्टि
झझकोर के कहे वो,
हे पार्थ!
ये वक्त नहीं विलाप का
उठ और कर युद्ध, अपने संकल्प का...!
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