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जीवन सचमुच वीणा ही तो है

पुस्तक: जीवन वीणा
कवियत्री: अनीता श्रीवास्तव
प्रकाशक: अंजुमन प्रकाशन, प्रयागराज
मूल्य: 150 रु
आई एस बी एन: 978-93-8856-12-5

जीवन सचमुच वीणा ही तो है। यह हम पर है कि हम उसे किस तरह जियें। वीणा के तार समुचित कसे हुये हों, वादक में तारों को छेड़ने की योग्यता हो तो कर्णप्रिय मधुर संगीत परिवेश को सम्मोहित करता है। वहीं अच्छी से अच्छी वीणा भी यदि अयोग्य वादक के हाथ लग जावे तो न केवल कर्कश ध्वनि होती है, तार भी टूट जाते हैं। अनीता श्रीवास्तव क़लम और शब्दों से रोचक, प्रेरक और मनहर जीवन वीणा बजाने में नई ऊर्जा से भरपूर सक्षम कवियत्री हैं।

उनकी सोच में नवीनता है … वे लिखती हैं  –

” घड़ी दिखाई देती है, समय तू भी तो दिख ” 

वे आत्मार्पण करते हुए लिखती हैं –

”लो मेरे गुण और अवगुण सब समर्पण
ये तुम्हारी सृष्टि है मैं मात्र दर्पण,

….

मैं उसी शबरी के आश्रम की हूँ बेरी
कि जिसके जूठे बेर भी तुमको ग्रहण ”

उनकी उपमाओ में नवोन्मेषी प्रयोग हैं– 

”जीवन एक नदी है
बीचों बीच बहती मैं

….

जब भी किनारे की ओर हाथ बढ़ाया है,
उसने मुझे ऐसा धकियाया है,
जैसे वह स्त्री सुहागन और पर पुरुष मैं ”

गीत, बाल कवितायें, क्षणिकायें, नई कवितायें अपनी पूरी डायरी ही उन्होंने इस संग्रह में उड़ेल दी है। आकाशवाणी, दूरदर्शन में उद्घोषणा और शिक्षण का उनका स्वयं का अनुभव उन्हें नये-नये बिम्ब देता लगता है, जो इन कविताओं में मुखरित हैंं। वे स्वीकारती हैं कि वे कवि नहीं हैं, किन्तु बड़ी कुशलता से लिखती हैं कि

“कविता मेरी बेचैनी है,
मुझे तो अपनी बात कहनी है “।

कहन का उनका तरीक़ा उन्मुक्त है, शिष्ट है, नवीनता लिये हुये है। उन्हें अपनी जीवन वीणा से सरगम, राग और संगीत में निबद्ध नई धुन बना पाने में सफलता मिली है। यह उनकी कविताओं की पहली किताब है। ये कवितायें शायद उनका समय-समय पर उपजा आत्म चिंतन हैं।

उनसे अभी साहित्य जगत को बहुत सी और भी परिपक्व, समर्थ व अधिक व्यापक रचनाओं की अपेक्षा करनी चाहिये, क्योंकि इस पहले संग्रह की कविताओं से सुश्री अनीता श्रीवास्तव जी की क्षमतायें स्पष्ट दिखाई देती हैं। जब वे उस ऑडिटोरियम के लिये अपनी कविता लिखेंगी, अपनी जीवन वीणा को छेड़कर धुन बनायेंगी जिसकी छत आसमान है, जिसका विस्तार सारी धरा ही नहीं सारी सृष्टि है, जहाँ उनके सह संगीतकार के रूप में सागर की लहरों का कलरव और जंगल में हवाओ के झोंकें हैं, तो वे कुछ बड़ा, शाश्वत लिख दिखायेंगी तय है। मेरी यही कामना है।

समीक्षक - विवेक रंजन श्रीवास्तव  
जबलपुर मध्यप्रदेश

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