जीवनविद्या
काव्य साहित्य | कविता मधुश्री15 Oct 2021 (अंक: 191, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
भूख, प्यास दिनरात भूल कर
विद्या का रसपान किया।
रास रंग है परछाई
जीवन सत्य का ध्यान किया।
बोझ लादकर कंधों पर वर्षों की यात्राएँ तय कीं।
उजले कल के स्वप्न लिये ज्ञान सोम प्याला पय पी।
समय दरोगा छड़ी लिए
ठोकर से सावधान किया।
बूँद बूँद से सागर भरता शब्द ज्ञान का नित नाता।
द्वादशाक्षर वेद मंत्र गागर में सागर कहलाता।
व्यर्थ करो मत अविश्वास
अविश्वासों ने व्यवधान किया।
पुस्तक से हो मित्र भाव बन जाती है जीवनसाथी।
दुख का पल हो कष्टसाध्य बन प्रकाश दीपक बाती।
ज्ञानहीन पीड़ित रोगों को
सत प्रकाश अनुपान दिया।
भूख प्यास दिन रात भूल कर
विद्या का रसपान किया।
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