जीवन-नदिया
काव्य साहित्य | कविता डॉ. योगेन्द्र नाथ शर्मा ’अरुण’14 Mar 2016
पल-पल बहती जीवन-नदिया, सागर इसे बुलाए रे।
मिलने के उल्लास में पगली, दौड़ी-दौड़ी जाए रे॥
जन्मों का नाता सागर से,
प्रीत को कैसे भूल सके?
बाधाओं से लोहा लेती,
नेह का झूला झूल सके॥
कोई बाधा रोक ना पाए, प्रेम-गीत नित गाए रे।
मिलने के उल्लास में पगली, दौड़ी-दौड़ी जाए रे॥
प्रेम में डूबी जीवन-नदिया,
बस सागर की दीवानी है।
बाधाओं से जूझे हर पल,
प्रेम की यही निशानी है॥
रुकते कब हैं प्रेम-दीवाने? मंज़िल यूँ मिल जाए रे।
मिलने के उल्लास में पगली, दौड़ी-दौड़ी जाए रे॥
नदिया का तो सारा जीवन,
बस देने में ही बीत गया।
जग की प्यास बुझाने में ही,
नदिया का जल रीत गया॥
फिर से जीवन पाने हेतु, ये सागर के घर जाए रे।
मिलने के उल्लास में पगली, दौड़ी-दौड़ी जाए रे॥
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