जिजीविषा
काव्य साहित्य | कविता डॉ. रानी कुमारी15 Sep 2020
हम जीते हैं
अपनों के लिए
अपने दर्द भुलाकर
हम दौड़ती और भागती हैं...
पर
मर्द सहन नहीं कर पाते,
कई बार
मानसिक और शारीरिक तनाव...
लेकिन
हम ताउम्र झेलती हैं दोनों,
हर महीने के एक सप्ताह
हमारा बीतता है
तन और मन की
उथल-पुथल में
रक्त शिराएँ पनाले की तरह
बहती हैं...
जब बोलने का भी मन ना करें
ग़ुस्सा इतना की
मरने मारने पर उतारू
देह और मन
दर्द की हालत में..
तराजू के काँटे की तरह
संतुलन बनाती जीवन में...
बाहर और भीतरले में!
हम निर्वाह करती हैं
बख़ूबी अपनी ज़िम्मेदारियों का
कुछ स्त्रियाँ हो जाती हैं
शिकार कुपोषण और अल्प रक्त की
फिर भी वह लगी रहती हैं
जी तोड़ मेहनत करने में
बस अपनी जिजीविषा को बनाए
और बचाए रखो साथी!
दर्द अपना इतना ना बढ़ाओ साथी
की दुनिया बेमानी लगने लगे...
क्योंकि हम दोनों का
एक साथ होना ही
हमें सार्थक करता है
और दुनिया को भी।
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